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Showing posts from November, 2017

तमाशा ( THE PUPPET SHOW)

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, आज टी.वी.पर यूँ ही अचानक बहुत दिन बाद ' कठपुतली' का नाच देखा तो ऐसा लगा मानो बचपन की यादों की संदूकची से कोई पुरानी ख़ूबसूरत सी मनपसन्द चीज हाथ लग गयी हो . 'कठपुतली ' कितनी मनोरंजक होती है ना ! पर शायद तब तक जब तक एक निर्जीव गुडिया है ...पर अगर वास्तविक दुनिया पर नज़र डालें तो पाएंगे की सजीव गुडिया भी हैं आस-पास . बाबाजिओं के डेरों में , कॉर्पोरेट ऑफिस आदि में ....धर्मान्धता /अन्धविश्वास , नियमों के धागों से बंधी कठपुतलियां , घड़ी की सुइयों के इशारे पर नाचती कठपुतलियां , घर-परिवार की जरूरतों को पूरा करने में खटती कठपुतलियां , राजनीति के दाँव पेचों के धागों से लटकती , सरकार के नियमों पर कमर मटकाती , कूद-कूद कर हाथ नचा नचा कर उम्मीद के इशारों पर नाचती रंग-बिरंगी , सुंदर और शरारती भांति-भांति की कठपुतलियां ...दलों के सदस्यों के रूप में गुंडा-गर्दी का खेल दिखाती , ईश्वर के नाम पर कहानी गढ़ कर लोगों को गुमराह करती ...बेरोजगारी , अशिक्षा , अवसरों की कमी , निर्रथक पढाई के बोझ से दबी , समाज के जात-पात , आरक्षण और ऊँच-नीच के भेद-भाव का शिकार 'कठ

Excuse me ! (माफ़ करियेगा)

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , मेल-मुलाकातों , शादी - ब्याहों और दावतों का मौसम पूरे शबाब पर है ...अल्ल्लाह के फज़ल से (भगवान की कृपा से ) कुछ दावतों का invitation भी नसीब हुआ है . कार्ड इंग्लिश और  हिंदी अलग-अलग भाषाओँ में मिले ...पर कुछ निमंत्रण पत्रों में सौभाग्यवती और आयुष्मान को इंग्लिश में पढ़कर वो फीलिंग नहीं आई जो हिंदी में आती है ...इसे मेरा old fashioned होना माना जा सकता है, वैसे मैं नए तरीकों को अपनाने के प्रति खुली सोच रखती हूँ और whatsapp पर अपने सन्देश इंग्लिश वाले अक्षरों में हिंदी में ही लिख भी लेती हूँ , फिर भी जो मजा अपने blog में हिंदी लिखकर आपसे जुड़ने में आता है वो मैं ही समझ सकती हूँ ( वो बात अलग है कि इस हिंदी के चलते ही मैं बहुत सारे लोगो को अपने blog और facebook page से जोड़ नहीं पाई हूँ )....सोशल मीडिया जो कि आजकल संपर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है ...वो भी 90% अंग्रेजी भाषी है ...पिछले दिनों एक दावत में बहुत सारे बेहतरीन कपड़ों , सजे चेहरों से रूबरू हुयी , कुछ सादा और संजीदा चेहरों ने ध्यान खींचा ...एक ग्रुप college going , अंग्रेजी भाषी , सुघढ़ शरीर वाले

फितरत !

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , चन्द लाइन आपकी नज़र ... '' कितनी अजीब है इंसान की फितरत ,     हर अच्छी बुरी बात कुछ दिन में बन जाती है आदत ! चेहरा छुपाना पहले शौक बना ...अब प्रदुषण ने मजबूरी में तब्दील कर दिया , पहले जो महज़ औरतों का था शगल ..पर अब तो मर्द भी ढकतें  हैं शकल,     क्योंकि फितरत तो न हम बदलेंगे ना ही हवा   हम उसे गन्दा करेंगे और वो हमें  ...     और फिर यूँ जीना हमारी आदत बन जाएगी .... पानी को ही लीजिये , अपनी फितरत के चलते हम इसे बर्बाद करतें हैं और मौका मिलने पर वो हमें ...और अब ऐसे ही जीने की आदत बन गयी है ... धर्म को ही देखिये ..हम उसका दुरूपयोग कर रहें हैं और वो हमारा , फितरत है सो सुधार हम नहीं लायेंगे ...फिर चाहे धर्म की खातिर फ़ना हो जायेगें क्या फर्क पड़ता है ऐसे ही जीना आदत बनती जा रही है ... पर इंसान का क्या ??? वो अपने ही जैसो पर किसलिए जुल्म ढाता है ?? क्यों हर समाचार अधर्म , कुकर्म , अन्याय , गुस्से , शोषण की ही गाथा गाता है ???      कैसी है ये फितरत जो दिनों-दिन आदत से ज्यादा जूनून बनती जा रही है ??      इंसानी फितरत अब बदल कर ...हैवान

आखिर धर्म ही क्यों ?

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 प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , अभी-अभी समाचारों में राफिया नाज़ , योग शिक्षक को लेकर ताज़ा - तरीन बहस को सुनते हुए मन अजीब से ख्यालों से भर गया ...कहा जा रहा है कि राफिया को योग छोड़ने की नसीहतें दी जा रही हैं, उनके धर्म के मुखियाओं की तरफ से ...शायद इसे एक शारीरिक क्रिया न मान कर किसी धर्म से जोड़ा जा रहा है ... क्या मानना है आपका ?? ये तैराकी को किस धर्म की तरफ रखना चाहेंगें आप ?? शूटिंग ( निशाने बाजी ) किस की तरफ जाएगी ?? ईमानदारी से सोचियेगा क्योकिं तब आप पाएंगे कि हमारे-तुम्हारे की शाखाएं बहुत गहरे कहीं हम सब के फायदों की जड़ों से निकली हैं ...और इन जड़ों  को  पाला-पोसा जाता है निजीस्वार्थ की खातिर . मेरी तरह शायद आपने भी ये गौर किया हो कि हमारे समाज में बहुत से ऐसे काम-धंधें है जिन में किसी धर्म विशेष का वर्चस्व है, लेकिन उन की उपयोगिता और मिलने वाले फायदे हर तबके और धर्म के लिए हैं . ऐसा क्या - क्या है जिसको हम सिर्फ धर्म के आधार पर बाँट सकते हैं  ?? सोचिये आजकल अस्पतालों में खून खरीदा नहीं जाता , खून के बदले खून दिया जाता है ...क्या उस खून के धर्म की जांच होती है इस्तेमाल से पह

'' कभी जवाब ...कभी पहेली ''

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , चंद लाइने आपकी नज़र हैं ....                                                                       '' कभी जवाब ...कभी पहेली ''     जिंदगी थोड़ी अजीब है ....सबके पास है पर कुछ के ही करीब है ...    माँ के पास है पर ...माँ की गोद के दूध मुहें बच्चे के करीब है,    पढ़ते हुए बच्चे के पास है पर ...ड्राइंग करते बच्चे के करीब है,    पापा के पास भी है पर ...क्रिकेट देखते पापा के करीब है,   दादी के पास है पर ...मिठाई  खाती दादी के करीब है, जिंदगी थोड़ी अजीब है....कुछ की है दोस्त तो कुछ की रकीब है... कार  में बैठे बच्चे की है दोस्त तो..... बाहर से हाथ बढ़ाकर भीख मांगते बच्चे की रकीब है, करोडपती कारोबारी की है दोस्त तो ...क़र्ज़ के लिए जान पर देने वाले किसान की रकीब है, मंदिर में गुप्त दान करते भक्त की है दोस्त तो ...बाहर प्रसाद के इन्तेजार में लाइन में बैठे लोगो की रकीब है, शादियों में जोश से नाचते ,फोटो खिचवाते चेहरों की दोस्त है तो ...बारात के साथ सर पर रौशनी लेकर चलते सरों की रकीब है ..... जिंदगी शायद बहुत अजीब है ... कभी -कभी जवाब कभ