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Showing posts from July, 2018

एक बस शर्म से नही मरते !

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, आज ऐसे ही मन में ख्याल आया ..नही सच कहूं तो समाचारों ने मन में ये बात लायी कि हम आज बीमारी से , कर्जे से , बलात्कार से , बम अटैक से , पत्थरबाजी से , गरीबी से , चिंता से , नशाखोरी से , बाढ़ से , भीड़ से , एक्सीडेंट से , अवसाद से , शक से , राजनीति से और भी ना जाने कितने ही तरीकों से मारे जा रहे हैं ...और ये कोई दबी-ढकी   या देश के अंदर तक रहने वाली बातें नही हैं ..ये न्यूज़ चैनल पर भी प्रसारित होने वाली खबरें हैं ..ये   सामाजिक मंचों , टी .वी स्टूडियो में होने वाली बहस के ज्वलंत मुद्दे भी हैं I   जिन पर बुध्हिजीवी वर्ग अपनी कीमती राय सलाह और सुझाव भी गरमा -गरम बहस के दौरान देते हैं I पर हम इस गौरवशाली देश के बेहद ज़हीन और सहनशील लोग हैं I अगर दूसरों पर होने वाले इन हमलों से इतनी जल्दी परेशान हो जायेंगे या बिना अपने पर बीते ही अपना खून खौलाने लगेंगे, तो भई लानत है हमारी सहनशीलता,अमनपसंदी और संस्कारी होने पर! ऐसे भी कहीं होता है क्या ? इतने बड़े देश में अगर भूख से एक घर की तीन बच्चियां मर भी गयीं , बलात्कार लगातार हो भी रहे हों , नौजवान बेकाबू होते जा रह

सन्देश ( whatsapp के !)

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , आप भी जरूर whatsapp   के उपभोक्ता होंगे .. यदि आपका जवाब ‘ ना ‘ है तो मैं आपको पिछड़ा नही सुरक्षित कहूँगी ! क्यों ?? क्योंकि whatsapp के संदेशों के जरिये आजकल समाज को भीड़ में बदलने का जो नया शगल शुरू हुआ है वो यकीनन चिंताजनक है ... समाचार पत्रों / टी.वी./ या अन्य   माध्यमों से आपको भी समाज के नए रूप ‘’   भीड़ तंत्र ‘’ और उसके विनाशकारी , अमानवीय , आतंककारी और घिनौने कामों की जानकारी अवश्य ही मिलती होगी ! कितना अजीब है कि ‘’ सत्यमेव जयते ‘’, ‘’ अहिंसा परमो धरम ‘’ और ‘’ असत्य पर सत्य की जीत ’’ में सदियों से भरोसा करने वाला , धार्मिक , सांस्कृतिक , पारम्परिक रीति-रिवाजों , धरोहरों से भरपूर हमारा समाज आज बीमार और संक्रमित है ... संदेह , अविश्वास , अत्याचार , अनैतिक व्यहवार ही वो संक्रमण हैं जिन्होंने सहज बुध्ही को हर लिया है ... सालों पहले धीरुभाई अम्बानी ने एक नारा एक सकारात्मक सोच के साथ बनाया था ‘’ कर लो दुनिया मुट्ठी में ‘’ इसके पीछे उनकी सोच कितनी सापेक्ष और वृहद थी !! पर उसी के विपरीत एक और वृहद सोच   जो पूर्णतया नकारात्मक है ,जो है कुछ कु

जूनून (एक नया मज़हब)

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , बड़े लम्बे समय से , बहुत सी ख़बरों के हवाले से और बहुत सारी आस-पास की घटनाओं से मुझे अब लगने लगा है कि अब दुनिया में एक नए मजहब ने गहरी जगह बना ली है ...और इसके अपने कायदे , सोच और फलसफें हैं ...यकीनन इसका इंसानियत , मासूमियत , आपसी प्यार , भाई-चारे से भी कोई लेना देना नही है ... ये उन लोगों के झुण्ड का मजहब है जो कि सताये , दबाये , धिक्कारे और उससे भी ज्यादा उकसाए गये हैं , जिनकी कोई अपनी निजी सोच नही है , जो बरगलाये गये हैं ... जो अधिकतर अशिक्षा ,गरीबी , भुखमरी , लालसाओं , महत्वाकांक्षाओं के शिकार हैं .... और जो चालाक , धूर्त , अमानवीय ,मतलबपरस्त लोगों के द्वारा गुमराह किये जाते हैं ...  अजीब नही लगना चाहिए अगर मै कहूं कि.... कश्मीर में पत्थरबाजी , निर्दोषों की हत्या , देश में पत्रकारों का खून , भीड़ का लोगों को शक की बिना पर पीट-पीट कर मार डालना , औरतों /बच्चियों /लडकियों की इज्जत लूटकर उनकी नृशंस हत्या करना वगैरह वगैरह  ... इस नए मजहब के रीति – रिवाज़ हैं , और जिन रिवाजों को पूरा करने के लिए वो ज्यादातर धर्म, जाति , कारण , जरूरत किसी की परवाह न

कविता - रिश्ता !

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                        ''  रिश्ता '' ये एक रिश्ता बहुत ही प्यारा है ,    जिसमें आस भी है, विश्वास भी , भरोसा भी है और यकीं भी ! ये एक रिश्ता बहुत ही प्यारा है ,     जिसमें रूठना भी है , मनाना भी , छेड़ना भी है और हँसाना भी ! ये एक रिश्ता बहुत ही प्यारा है ,     जिसमे तड़प भी है , इन्तजार भी , इनकार भी है और स्वीकार भी ! ये एक रिश्ता बहुत ही प्यारा है ,     जिसमे सब-कुछ है थोड़ा - थोड़ा , और प्यार बहुत ज्यादा है ! एक रिश्ता जिसका कोई नाम नहीं है ....बहुत ही प्यारा है !!!  पर कहाँ मंजूर है दुनिया को कोई बेनाम रिश्ता ! तुम ना दो नाम, तो वो दे देती है ...  वैसे दुनिया भी कहाँ कोई रिश्तेदार है हमारी... फिर भी वो जबरन हमारी जिन्दगी को घेर लेती है !  कौन है ? कहाँ है ? किसकी है असल में ये दुनिया ? क्या ये झुण्ड है उन लोगों का जो हमेशा सामने हैं ....  पर साथ नही !!! आज के लिए इतना ही ... अपना ख्याल रखियेगा .....

अवसाद / depression (part 2)

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, पिछली बार आपसे निराशा पर बात की थी .... मेरा मानना है कि निराशा की जड़ें अस्वस्थ शरीर में हैं ...लेकिन इसके दूसरे पहलू को भी अनदेखा नही किया जा सकता और वो है उम्मीद ...जी हाँ आशा या उम्मीद ! आपने   खुद भी महसूस किया होगा कि जब हमारी उम्मीद का स्तर बढ़ता है ...फिर वो चाहे घर के सदस्यों से हमारा ध्यान रखने के लिए हो , स्कूलों   या विद्यालयों में अच्छे नम्बर मिलने की हो , नौकरी में अच्छा पद या तनख्वाह में बढ़ोतरी की हो , अपने प्रिय से प्रेम पाने की हो , प्रिय के द्वारा याद किये जाने की हो , धन – सम्पदा बढने की हो , अपने सपनों को पूरा करने की हो( जिसमें दूसरों की भी भागीदारी हो)..अधिकतर मन को निराशा से भर देती हैं ... विशेषकर जब इन उम्म्मीदों और सपनों में हम खुद से ज्यादा दूसरों से अपेक्षाएं रखते हैं ... तब निराशा अनायास ही हमारे इर्द-गिर्द घिर आती है याद कीजिये कभी किसी छोटे बच्चे को अचानक गिर जाने पर चोट लगने से ज्यादा इस बात पर रोते देखा हो कि माँ आकार उसे उठाये गले लगाये ...रोना चोट लगने पर इतना नही जितना माँ के देर से आने पर आता है .... किसी