तमाशा ( THE PUPPET SHOW)

प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, आज टी.वी.पर यूँ ही अचानक बहुत दिन बाद ' कठपुतली' का नाच देखा तो ऐसा लगा मानो बचपन की यादों की संदूकची से कोई पुरानी ख़ूबसूरत सी मनपसन्द चीज हाथ लग गयी हो . 'कठपुतली ' कितनी मनोरंजक होती है ना ! पर शायद तब तक जब तक एक निर्जीव गुडिया है ...पर अगर वास्तविक दुनिया पर नज़र डालें तो पाएंगे की सजीव गुडिया भी हैं आस-पास . बाबाजिओं के डेरों में , कॉर्पोरेट ऑफिस आदि में ....धर्मान्धता /अन्धविश्वास , नियमों के धागों से बंधी कठपुतलियां , घड़ी की सुइयों के इशारे पर नाचती कठपुतलियां , घर-परिवार की जरूरतों को पूरा करने में खटती कठपुतलियां , राजनीति के दाँव पेचों के धागों से लटकती , सरकार के नियमों पर कमर मटकाती , कूद-कूद कर हाथ नचा नचा कर उम्मीद के इशारों पर नाचती रंग-बिरंगी , सुंदर और शरारती भांति-भांति की कठपुतलियां ...दलों के सदस्यों के रूप में गुंडा-गर्दी का खेल दिखाती , ईश्वर के नाम पर कहानी गढ़ कर लोगों को गुमराह करती ...बेरोजगारी , अशिक्षा , अवसरों की कमी , निर्रथक पढाई के बोझ से दबी , समाज के जात-पात , आरक्षण और ऊँच-नीच के भेद-भाव का शिकार 'कठ...