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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, श्री जवाहरलाल नेहरु के द्वारा लिखा एक लेख ‘’ CULTURE ‘’ पढ़ा और पढ़ाया भी था जो कि state बोर्ड की ग्यारहवीं या बारहवीं की इंग्लिश की किताब में था ... लेखक के शब्दों का आशय ( मेरे अनुसार) ये है कि culture यानि संस्कृति की कोई निश्चित परिभाषा नही हो सकती सिवाय इसके कि ये उन रिवाजों का निरंतर पालन है जो किसी समुदाय / स्थान /वर्ग विशेष की  भौगोलिक / आर्थिक / सामाजिक स्थिति आदि से प्रभावित होते हैं और काफी हद तक इनका अतार्किक अनवरत पालन इनके पालन करने वालों को एक सीमा में बांध देता है ... लेखक का विश्वास है कि संस्कृति में भी नवीनीकरण अति आवश्यक है ...अन्यथा इसका हश्र भी उस रुके पानी के समान है जो सड़ने और बदबू करने लगता है और काई और कीटाणुओं को जन्म देता है ... प्राचीन संस्कृति के विवेकहीन अनुकरण और नवीनीकरण के ह्रास से इसके अनुयायी भी एक सीमा में बंध जाते हैं और सिमित मानसिकता का शिकार बन जाते हैं जहां  परस्पर गाह्यता , सहिषुनता और विकास के रास्ते लगभग बंद ही हो जाते हैं ..ऐसे में समुदाय एकाकी , उपेक्षित और पिछड़े लोगों का झुण्ड मात्र बनकर रह जाता है ... ज