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Showing posts from June, 2017

आईना

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नमस्कार नहीं बस प्यार दोस्तों , हर पोस्ट के साथ आपका साथ ,आपका  प्यार और  बढ़ने की उम्मीद थी ,पर कहीं  कुछ है जो जुड़ नहीं पाया ....शायद दिल या जज्बात ....फिर भी एक आस है कि हम लोग लम्बे समय के साथी बनेगें .... वैसे आजकल कहाँ हम सही मायनो में जुड़े हुए हैं , मन के तारो से ज्यादा मोबाइल के नेटवर्क और इन्टरनेट है जो हमे साथ रखने का कारण है , और ये साथ भी मन का भ्रम है खुद से पूछिए फेसबुक या whatsapp पर कितनी बार आप सही या सच्चे मन से लाईक का बटन दबाते हैं या मन के सच्चे भावों वाली स्माइली  क्लिक करते हैं ..... ईमानदारी से सोचियेगा क्योकि सोचने की आज़ादी अभी भी ख़तम नहीं हुयी है ...एक वो ही हमारी असली ऐसी मिलिकियत है जिसमें  किसी का दखल नहीं है  ....ख्यालो को गुलाम बनने भी मत दीजियेगा, नहीं तो कंगाल हो जायेंगे . एक अकेलापन , पसंद किये जाने की भूख ,भीड़ का हिस्सा बनने की ललक और साथ ही तारीफ पाने की चाह ... ही है जिन्होंने  सेल्फी , फेसबुक , Whatsapp . Tindel (not sure abt name) और न जाने क्या क्या ईजाद करवाया है ...हम सोचते हैं हम जुड़ रहे हैं पर अब तो हम और दूर हो रहे हैं क्योकि हमारे प

प्रयास

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नमस्कार नहीं बस प्यार दोस्तों , अच्छा लग रहा है आपसे रूबरू होकर  , प्यार और तव्वजो जो भी मिल रही  है आपकी.... दिल से शुक्रिया . पिछली पोस्ट पर एक पुराने स्टूडेंट ने तारीफ के साथ एक इच्छा भी जाहिर की , उसने लिखा कि  अगली बार कोई motivational post  डालूँ  ...उसकी इस लाइन  को पढकर यकीं मानिये पहले तो  बेहद ख़ुशी हुई और ये सोचकर भी बहुत अच्छा लगा की उस बच्चे को मुझ पर भरोसा है कि मेरा लिखा MOTIVATIONAL भी हो सकता है ....पर अगले ही पल एकदम से लगा कि अनजाने ही एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गयी  कि अब उसके लिए कुछ ऐसा लिखना है जो दिल से निकले , जज्बातों से लबरेज़ हो और साथ ही किसी को किसी सही दिशा में ले जाये ...सच कहूँ तो एक बार को तो बिलकुल वैसा ही एहसास हुआ जैसा हरबार क्लास में घुसने से पहले होता था कि मेरा पढाया न सिर्फ मेरे बच्चे समझे बल्कि सीखे भी और कुछ खास करके दिखाए भी ...... और इसी कशमकश में लगा कि ये तो उसी ने मुझे प्रेरित कर दिया  ,किसी अलग जिम्मेदारी को उठाने के लिए..... पर चलिए एक ईमानदार कोशिश की जाये ....... बहुत सोचने पर भी  मोटीवेट या प्रेरित करने का कोई खास तरीका नहीं

दिल से

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नमस्कार नहीं बस प्यार दोस्तों , स्टार गोल्ड सेलेक्ट चैनल पर आज ' आईलैंड सिटी ' (फिल्म) देखते हुए इंसानी रिश्तों का एक नया रूप देखने को मिला ....' डिअर जिन्दगी ' शायद देखी हो आपने , बहुत नाम और दाम नहीं कमाया इस फिल्म ने, पर यकीं मानिये मेरे दिल और जज्बातों को छुआ इसने ....असल में नौकरी और पद बदलने के बाद से अपने आप के साथ वक़्त गुजरने का बहुत मौका मिला (या कहिये की जिंदगी में अकेलापन बढ़ गया )और फिर लगा की ऐसा बहुत कुछ है ,जो हम खुद के बारे में एक लम्बी जिंदगी जी लेने के बाद भी नहीं जान पाते या शायद जानना चाहते भी नहीं .....या के हम जानबूझ कर अपने आप को ही नजर अंदाज़ करते हैं .....मुझे लगता है चीजो से आँख फेरना ,,सच्चाई से मुहँ  चुराना.. ये सब इंसानी फितरत है .... क्योकि हम इतने daring  भी नहीं होते की अपनी ही कमियों , चाहतो , नफरतो या इच्छाओ को खुल कर जाहिर कर पायें  .....मेरे शब्दों में जाहिर कर रही हूँ .....   " उस दिन ही हम खुल कर जियेंगे  ,  जब ये डर न होगा की 'लोग क्या कहेंगे '    " " जिन्दगी फ़िक्र न कर  , चलती रह मद्धम मद्धम  तेरी स

पापा

 नमस्कार नहीं बस प्यार दोस्तों ,    आज इतवार है , वर्किंग वुमन होने के नाते इतवार  का दिन यानि पूरे  हफ्ते के छूटे हुए काम निबटाने का दिन .....३१ अक्टूबर २०१० भी इतवार ही था ..........भाई का फ़ोन आया एक लाइन में हाल चाल पूछने के बाद उसने सामान बांधकर घर पहुचने को कहा ....."पापा नहीं रहे"............................दिमाग सुन्न हो गया , पिछले इतवार को ही भाई उन्हें वृद्ध आश्रम में जबरन छोड़ कर आया था ....और हाँ उसके दो दिन पहले ही तो मैंने अपने यहाँ से उन्हें उल्हानो और सामान के साथ भाई के साथ विदा किया था , कैसे सात दिन में उनकी कही बात पूरी हो गयी " ठीक है तू मुझे नहीं रख सकती न , बेटा अब जब तक साँस है तेरे घर की तरफ  देखूंगा भी नहीं और वो जो मुझे पहले ही नहीं रख पाया उसके हाथ का पानी भी नहीं चाहिए मरने पर ", एक इन्सान के रूप में मेरे पिता कोई आदर्श व्यक्ति नहीं थे , दुनिया के पास उन्हें कोसने की बहुत वजहे  हैं  और उनकी कमियों की लम्बी फेहरिस्त भी है.....एक इन्सान के तौर पर वो नेकदिल , मुह्फट , कर्मठ , जिंदादिल और धुन के पक्के थे... .ये सब इसलिए नहीं कहा की व

साथ

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नमस्कार नहीं बस प्यार दोस्तों ,                       आज आपसे मुखातिब होने से पहले बहुत से ख्याल दिमाग में आ-जा रहे थे , फिर लगा सोच-समझकर ,बना-सजाकर बात कही तो बनावटी हो जाएगी , फिर वो दिल और जज्बात के दायरे से अलग हो जाएगी...और अपनी बात तो उन ख़यालात की है जो आते हैं और फिर दिमाग पर छा  जाते है और लगता है की  उन्हें जाहिर किया जाये .....अब चाहे आप माने  या न माने ऐसा बहुत कुछ है जो हम सब में एक सा है बस अलग है तो दिखाने  जताने या जाहिर करने का तरीका.... .कहीं  कुछ जुड़ रहा है हमारे बीच ... और  शायद  हम जल्दी ही एक दुसरे को  बेहतर तरीके से समझ  पाएंगे  ....और शायद ये जुड़ाव मुझे और आपको मन को हल्का करने , चीजों को , जिंदगी को बेहतर ढंग से  समझने में मददगार हो..... .साथ रहिएगा ...हम सभी को एक साथ की ही जरूरत है वरना भीड़ तो हर  जगह लग जाती है , कुछ लिखा था जो  आपसे साझा करती हूँ , पसंद आये तो तारीफ को शब्दों में पिरोकर भेज दीजियेगा  ( हौसला अफजाई के लिए ) ..... "बिखर-बिखर कर जुड़ जाती हूँ , बहुत ढईठ हूँ  मैं.... इसलिए कोई मुझको सहारा नही  देता " "न पशेमा , न उदास ,

इब्तेदा करती हूँ इज़हारे ख़यालात से , रूबरू करती हूँ अपने दिल और जज़्बात से.

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नमस्कार नहीं बस प्यार दोस्तों , यूं तो कोई अंत नहीं है इस सोच और यादों के समन्दर का ,पर वक़्त बेवक्त उठाने वाली लहरें हलचल सी मचा देती हैं दिल और दिमाग में , युहीं  अनमनी सी थी आज, क्यों ?....पता नहीं पर कुछ था जो देर तक हावी था , और कब अचानक अलमारी से पुरानी एल्बम निकाल कर पलटने लगी याद नहीं  .....'माँ ' , ओह ये तो माँ की याद थी जो आज झकझोर गयी ....लेकिन क्यों ....शायद इसलिए की गर्मी की छुट्टी  के बाद स्कूल लौटी सहकर्मियों ने मायके से लाये पकवान और उपहारों की बात छेड़ी थी ,कुछ यूं  ही  कभी  जब माँ की यादो से मन भारी  हुआ था तब जज्बातों को लफ्जों का जामा पहनाया था ............... पेश-ऐ-खिदमत है   "कितनी प्यारी , कितनी सुघड़ , कितनी समझदार भी है तू , जब भी सुनती हु तारीफ, तो माँ-पापा को महसूस करती हूँ ." "कसम तुझे जो तू रोई , और कहकर सुन्न हो गयी , वो माँ जो मेरे ससुराल जाने पर , दो-दो दिन खाना नहीं खाती थी ." एक नगमा पेश-ए-नज़र है , पसंद आये  तो तारीफ भेजिएगा ....इंतज़ार रहेगा   "ऐ मालिक तू मुझको चिड़िया  कर दे , मेरे नन्हो का पेट भ