इब्तेदा करती हूँ इज़हारे ख़यालात से , रूबरू करती हूँ अपने दिल और जज़्बात से.

नमस्कार नहीं बस प्यार दोस्तों ,

यूं तो कोई अंत नहीं है इस सोच और यादों के समन्दर का ,पर वक़्त बेवक्त उठाने वाली लहरें हलचल सी मचा देती हैं दिल और दिमाग में , युहीं  अनमनी सी थी आज, क्यों ?....पता नहीं पर कुछ था जो देर तक हावी था , और कब अचानक अलमारी से पुरानी एल्बम निकाल कर पलटने लगी याद नहीं  .....'माँ ' , ओह ये तो माँ की याद थी जो आज झकझोर गयी ....लेकिन क्यों ....शायद इसलिए की गर्मी की छुट्टी  के बाद स्कूल लौटी सहकर्मियों ने मायके से लाये पकवान और उपहारों की बात छेड़ी थी ,कुछ यूं  ही  कभी  जब माँ की यादो से मन भारी  हुआ था तब जज्बातों को लफ्जों का जामा पहनाया था ...............पेश-ऐ-खिदमत है  

"कितनी प्यारी , कितनी सुघड़ , कितनी समझदार भी है तू ,
जब भी सुनती हु तारीफ, तो माँ-पापा को महसूस करती हूँ ."


"कसम तुझे जो तू रोई , और कहकर सुन्न हो गयी ,
वो माँ जो मेरे ससुराल जाने पर , दो-दो दिन खाना नहीं खाती थी ."


एक नगमा पेश-ए-नज़र है , पसंद आये  तो तारीफ भेजिएगा ....इंतज़ार रहेगा 

"ऐ मालिक तू मुझको चिड़िया  कर दे , मेरे नन्हो का पेट भर जाये इतना बस तू मेरी चोंच में धर दे ,
  
ना  छिनू , ना झपटू ,न बेचैन होऊ , मेरी चाहतो पैर लगाम कस दे ,
ऐ मालिक तू ................................................


डैने हो काफी बच्चो की खातिर , उन्ही में तू सारी दुनिया को भर दे ,
ऐ मालिक तू .......................................

हो जाये बड़े वो कितने भी आगे , मेरा इन्तेजार उनकी आँखों में भर दे 
ऐ मकिल तू ....................................

 मेरी माँ के हम दो बच्चे ......भाई और मैं ....आज के लिए बस इतना ही , माँ की यादों के साथ ......


अपना ख्याल रखियेगा. 
      

Comments

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  2. संवेदनशील अभिव्यक्ति....लेखनी पर जबरदस्त पकड़ है ...अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा
    शैलेजा जोशी

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