' मन की बात '

प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,

काफी दिनों से कुछ नहीं लिखा। इसलिए नहीं कि कुछ था ही नहीं लिखने को या किसी भी बात ने मन को झकझोरा नहीं। बल्कि सच तो ये है कि lockdown की नीरवता मन पर भी छाई थी और जब कहीं कोई आहट ना हो तो लगता है कि अब हमारे यहां कौन आएगा। वैसे ही जैसे कि मेरे blogs पर कोई response नहीं था तो लगा कि जाने दो कोई नहीं पढता और अगर नहीं पढता तो या तो उसको मेरी बातें सही नहीं लगतीं या इनमें किसी के पसंद किये जाने लायक मुद्दे नहीं हैं।

और हो भी सकता है कि लोगों ने आजकल पढ़ना कम और देखना ज्यादा शुरू कर दिया हो। फिर यकायक मन में आया कि नहीं ये सब मैं किसी की प्रतिक्रिया पाने के लिए नहीं लिखती (वो अलग है कि प्रतिक्रिया साकारत्मक हो तो हमें प्रोत्साहित करती है और नाकारात्मक हो तो सतर्क कर देती है) मैं लिखती हूँ अपने मन को हल्का करने के लिए उस बोझ से जो उन विचारों का होता है जो ख़ुशी से ज्यादा चिंता, कष्ट,खेद या गुस्से का कारण बनते हैं।

यूँ भी हरेक का अपना -अपना अभिव्यक्ति का तरीका होता है। चित्रकारी, संगीत, नृत्य आदि लेखन के अलावा वो तरीके हैं जो मन की गिरह को ख़ोल कर विचारों को उन्मुक्त गगन में विचरण करने देते हैं।

अब लीजिये ना इस सबके चक्कर में मुद्दे की बात ही भूल गयी। तो हुआ यूँ कि सभी की तरह अपने career को ऊँचाई देने की गरज से पूरे नियम कायदों के साथ मैंने अपनी नौकरी में कई जगह बदलीं। लेकिन कई कारण हुए जो मेरी नियमितता में बाधा बने।ख़ैर मैं शुक्रगुजार management की कि उन्होंने मुझे चुना और काम करने का मौका दिया। मेरे जाने के बाद मुझे शायद कोसा भी हो क्योंकि व्यवस्था में नए लोगों को लाना पड़ा। लेकिन क्या कभी उन्होंने जानने की कोशिश की कि मुझे बदलाव की जरूरत क्यों हुई ?

बस यही सोच रही थी कि किसी भी संस्था का प्रबंधन क्यों नहीं एक बार इस पर विचार करता। कोई भी सेवाकर्मी जो अपनी ओर से ईमानदारी , मेहनत और लगन से काम कर रहा है। क्या जरूरी नहीं कि उसके जाने का सही-सही कारण पता लगाया जाये। उससे feed - back पर गौर किया जाये। कितना कुछ हमारा तजुर्बा सिखाता है। किसी काम को करने और करते रहने से हम उसके बारे में राय दे सकते हैं। पर क्यों मैनेजमेंट इस पर ध्यान नहीं देते ? अगर आप किसी को तनख्वाह दे रहे हो तो उसकी सेवा के बदले में। लेकिन पता नहीं किस बात का गुरूर या अहम् होता है कि हम किताबी ज्ञान को तजुर्बे और इंसानी सलाह से ऊपर रखते हैं।

माननीय अब्दुल कलाम जी के एक लेख में लिखी पंक्तियों के भाव थे कि '' हम भारत में किसी को काम पर लगते हैं तो उसकी काबिलियत को देखकर हम उससे इतना ज्यादा काम लेने लगते हैं कि उसकी अपने क्षेत्र में उत्पादकता घट जाती है। हम मानव संसाधन को पूरी तरह निचोड़ लेते हैं।''

ईमानदारी से सोचियेगा,अपने या अपनों के साथ अपने होते देखा होगा ये सब। याद करिये कि विदेश के मंत्री ने अपने भारत दौरे में मुंबई के डब्बे वालों के mechanism पर मीटिंग की थी उन्हीं को बुलाकर। और हम आज भी बहुत से क्षेत्रों में अव्यवस्था रोकने के लिए सिर्फ किताबों और ूसरे साधनों का सहारा लेते हैं।

                                   'जिंदगी किताबों से नहीं निकली,जिंदगियों ने मसौदे दिए हैं किताबों को।'

आज के लिए इतना ही.. .

अपना ख्याल रखियेगा।    

Comments

  1. बहुत ख़ूबसूरत विचार।पर यह कहना ठीक न होगा कि लोग पड़ते नही।इस महामारी ने सब कुछ ध्वस्त सा कर दिया है।सोशल डिस्टेंस रखने की वजह से अपने और दूर होते चले गए हैं।डिजिटल मीडिया की भरमार के कारण वो भी सम्बन्धों को कायम रख पाने में पंगु से हो गया हैं।जिये जा रहे हैं इस उम्मीद में कई जल्द यह वक़्त चला जायेगा।फिर वही अपना समान लौट आएगा।
    वक़्त निराश होने का नही आशावादी बने रहने का है। कमेंट पड़ने के लिए आदर सहित धन्यवाद।

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  2. Nice word's to joining each us and others

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  3. Nice word's always

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