पापा

 नमस्कार नहीं बस प्यार दोस्तों ,
  
आज इतवार है , वर्किंग वुमन होने के नाते इतवार  का दिन यानि पूरे  हफ्ते के छूटे हुए काम निबटाने का दिन .....३१ अक्टूबर २०१० भी इतवार ही था ..........भाई का फ़ोन आया एक लाइन में हाल चाल पूछने के बाद उसने सामान बांधकर घर पहुचने को कहा ....."पापा नहीं रहे"............................दिमाग सुन्न हो गया , पिछले इतवार को ही भाई उन्हें वृद्ध आश्रम में जबरन छोड़ कर आया था ....और हाँ उसके दो दिन पहले ही तो मैंने अपने यहाँ से उन्हें उल्हानो और सामान के साथ भाई के साथ विदा किया था , कैसे सात दिन में उनकी कही बात पूरी हो गयी " ठीक है तू मुझे नहीं रख सकती न , बेटा अब जब तक साँस है तेरे घर की तरफ  देखूंगा भी नहीं और वो जो मुझे पहले ही नहीं रख पाया उसके हाथ का पानी भी नहीं चाहिए मरने पर ",

एक इन्सान के रूप में मेरे पिता कोई आदर्श व्यक्ति नहीं थे , दुनिया के पास उन्हें कोसने की बहुत वजहे  हैं  और उनकी कमियों की लम्बी फेहरिस्त भी है.....एक इन्सान के तौर पर वो नेकदिल , मुह्फट , कर्मठ , जिंदादिल और धुन के पक्के थे....ये सब इसलिए नहीं कहा की वो मेरे पापा थे ...बल्कि इसलिए की वो ऐसे थे .
  
जिंदगी को अपने तरीके से जीने का उनका अंदाज़ ,हर किसी से बहुत गर्मजोशी और अपनेपन से मिलना , किसीकी (जरूरतमंद ) भी मदद के लिए हमेशा तैयार ......उनके दोष गिनाने वालो के साथ मैंने अक्सर उन लोगो को भी देखा है जो उनकी इन खासियतो की वजह से उन्हें पसंद करते थे ,

क दिन जब किसी बात पर खिसिया गयी थी और पापा से बहस हुई थी तो उन्होंने बहुत उदास लहजे में कहा था " कह ले बेटा वक़्त है तेरा , बेटे तो भगवान ने तुम दोनों को भी दिए हैं "...............ये दुआ थी या बद्दुआ वक़्त बताएगा .


सच कहूँ तो उमर और अकल के तकाज़े से अब ये समझ आने लगा है कि  पापा से लोगो की  शिकायते इसलिए नहीं थी कि  वो किसी का बुरा करते थे बल्कि एक साधारण इंसानी स्वभाव इसके पीछे काम करता था या करता है  .....और वो है ' ईर्ष्या ' ....आपको नहीं लगता की ज्यादातर हम लोगो की उन्ही बातों से झल्ला जाते हैं जो हमारे  subconscious में होती है पर हम उनको दुनिया , समाज, रीती-रिवाज़ या परिस्थितियों का हवाला देकर मन में दबा लेते हैं और खुद को महान या आदर्श जताना चाहते हैं........ईमानदारी से सोचियेगा ....यहाँ बात दिल और जज्बात  की है कोई दिखावा नहीं  .....पापा BINDAAS थे ....बस यहीं  से उनकी बुराईयों की शुरुआत होती थी .....बाकि आप खुद समझदार हो .............

एक लघु कथा जो जाने अनजाने अपने किये और पापा पर बीती  को ही याद करके कभी लिखी थी शायद ..आपसे साझा कर रही हूँ ....अगर आप नाराजगी भी जताएंगे तो गिला नहीं होगा ..

कहानी यहाँ से शुरू होती है ......

पिताजी ने फिर तोते की तरह रटा " ध्यान से जाना , बाहर ठण्ड है, मफलर लपेट लेना " और कहते हुए घर के भीतर चले गए . 

बाहर ५० वर्षीय बेटे ने झुंझलाकर कहा " ठीक है , मुझे पता है, मै  बच्चा नहीं हूँ , रोज - रोज वही बात..इनका दिमाग ठिकाने नहीं है , अब इनका कुछ सोचना पड़ेगा ".

पिताजी ने फिर कहा ..." ध्यान से जाना , ठण्ड है मफलर लपेट लेना और हाँ प्यार से रखना अपने बेटे को , उसका कहा मानना , यहाँ वृध्हाश्रम  में अकेलापन बहुत लगता है "    और कहकर आश्रम के भीतर चले गए .



पापा की यादो के साथ .....फादर्स डे पर ......आज के लिए बस इतना ही .



अपना ख्याल  रखियेगा .












   

Comments

  1. Its really heartouching. I will care for my parents even more.

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  2. If it has caused any change in you ...then I must pray God to help me even more in upcoming days.

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  3. बिन्दास पापा की बिन्दास बिटीया ....बहुत सरल और सहज शब्दों में कडवा सच लिखा है ...ऐसे ही लिखती रहो
    Shaileza Joshi

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  4. Aise hi utssah badhati rahiyega...behtar hone ki koshish karti rahoongi

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