देखी -सुनी
आज मन हुआ कि आपके साथ वो छोटी - छोटी कहानियां साझा करूं जो कहीं न कहीं असल जिंदगी से प्रभावित हैं ....या कहूँ कि देखी - सुनी , कहीं पढ़ी या किसी की बताई (आपबीती) को अपने लफ्जों और जज्बातों में बयाँ किया है ...औरत के हालात बदलते वक़्त के साथ उतनी तेजी से नहीं बदले हैं ...और हमारे पुरुष-प्रधान समाज में तो इसे वैसे भी थोडा ज्यादा समय लगेगा ...सही कहा ना ?....ईमानदारी से सोचियेगा ....क्योकि तभी आप आस-पड़ोस , रिश्तेदारों , दोस्तों के साथ साथ अपना भी मूल्याङ्कन और सच्चाई का सामना भी कर पाएंगे ....
' आदत '
ट्रे से चाय का प्याला उठाते हुए मनीष ने मीना से पूछा ," तो भाभीजी आप भी जाब में हैं क्या "? "जी" इससे पहले कि वो बात पूरी करती , पति आशीष ने तल्ख़ लहजे में कहा ," हाँ टाइम पास है , या कहो कि घर से बाहर निकलने का बहाना है". " अरे ऐसा क्यों कहते हो यार "! मनीष आगे बोला ,"आजकल दोनों लोगो के कमाने कि वजह से ही हम लोग ठीक - ठाक ढंग से रह पाते हैं और बच्चों को भी अच्छी तरह से रख पाते हैं ".
आशीष चिढते हुए बोला ,"तुम्हारे यहाँ का पता नहीं पर हमारे यहाँ तो अपनी दवा - दारू में ही खर्च कर डालती है सब ". " अरे तो क्या भाभीजी की तबियत ख़राब रहती है ? तो एक फुल टाइम नहीं तो पार्ट-टाइम नौकरानी रखो न . मैंने नोटिस किया वो काफी देर से सब - कुछ अकेले ही कर रहीं हैं . कामकाजी महिला ऊपर से तबियत भी ठीक नहीं और तुमने १५-२० लोगो को खाने पर बुला लिया ". मनीष बहुत आश्चर्य से बोला ." नहीं- नहीं ऐसा कुछ नहीं है . घर के काम का शौक है उसे !और नौकरानी चाहे फुल टाइम हो या पार्ट टाइम घर में प्राइवेसी ख़तम हो जाती है और चोरी-चकारी का डर भी बना रहता है ", आशीष ने सफाई दी . " कैसी बाते करते हो अकेले बेचारी......" मनीष के कुछ बोलने से पहले ही आशीष ने जोर देकर कहा ," छोड़ यार उसे आदत है ".
' अपराधबोध '
जैसे ही पति घर में घुसा उसने पूरी सतर्कता के साथ हमेशा की तरह चाय नाश्ते से उसका स्वागत किया , और उसके साथ चाय लेकर बैठ गयी , जबकि वह हमेशा की तरह स्पोर्ट्स चैनल पर क्रिकेट की हाई लाइट्स देखने में व्यस्त हो गया . चाय के बाद बर्तन उठाने और मेज साफ करने तक पति को टी वी में लगा देखा तो उसने अगले दिन की स्टाफ मीटिंग और प्रेज्न्टेष्ण की तैयारी के लिए लैप टॉप उठाकर काम शुरू करने का विचार बनाया ही था कि पति ने कहा कि वो आज खाने में कुछ स्पेशल बना ले , और साथ ही उसके सर की मालिश कर दे क्योकि ऑफिस में बहुत काम के कारण वो बहुत थकान महसूस कर रहा था . उसने थोड़ी झिझक के साथ पति को खुद ही माथे पर बाम लगाने कि सलाह दी और ये बताया कि अक्सर अपने ऑफिस से आकर वो भी यही बाम लगाती है और साथ ही ये भी जोड़ दिया कि कल ऑफिस में बहुत जरूरी काम के चलते उसने पति के आने से पहले ही शाम से सादे लेकिन पति की पसंद के ही खाने की तयारी की हुयी है . अभी थोडा वक़्त निकाल कर उसे बिटिया के कल के एग्जाम की तैयारी भी करानी है .....
इतना सुनते ही पति भड़क उठा और चिल्लाया ," हमेशा मुझे अपनी मैनेजरी का रुआब मत दिखाया करों . अपने घर की जिम्मेदारियों से नौकरी के नाम पर पीछा मत छुड़ाया करो . नौकरी करने की इच्छा तुम्हारी थी .और सिर्फ तुम्हारी तनख्वाह से ही घर नहीं चलता है. वैस भी हर घर में माँ और बीवी को इतने सब काम करने ही पड़ते हैं . मैं जा रहा हूँ बाहर खाने ". इतना कहकर वो दरवाज़ा पटक कर चला गया ...
आज एक बार फिर वो अपने को एक अच्छी गृहस्थन और अच्छी अर्ध्न्गिनी न बन पाने के लिए कोस रही थी . यही अपराधबोध ऑफिस में मिलने वाली तारीफों और प्रमोशन को हमेशा ही बौना कर देता है . ऑफिस का काम छोड़कर वो बेटी के कमरे की तरफ बढ़ गयी . ये सोचकर कि इन रोज-रोज के झगड़ो से वो प्रभवित न हो.
स्त्री-पुरुष एक ही गाड़ी के दो पहिये हैं जिनका आपसी सामंजस्य और सहयोग ही गाड़ी को सही गति और दिशा देता है ......इसी सोच के साथ .......आज के लिए बस इतना ही .........
अपना ख्याल रखियेगा ........
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