यादें ( जिन्दगी के साथ भी और बाद भी )

प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,

अरसा हुआ मायका छोड़े ...सालों हुए सबसे दूर हुए ...पर कुछ है जो कसकता है ...
' मेरा मायका ' मेरी यादें ....आपके साथ साझा कर रही हूँ

'' वो जो एक दरख़्त था पीपल का बहुत बड़ा और घना , मेरे नैहर की बंद गली के अहाते में ...अब नही रहा !

वो बड़ा घना दरख़्त पीपल का ,जो था आशियाना ढेरों परिंदों का ...वो परिंदे जो दादी की थाली लगते ही ,आंगन में उसे घेर लेते थे ...वो दादी जो रात को सोने का नाटक करने पर भी जबरन आँखों में घर का बना काजल डाल ही देती थी ऊँगली से ...वो दादी भी अब नही रही ...और दादी के वो परिंदे भी कहीं दूर किसी आशियाने का रुख कर गए

वो बड़ा घना दरख़्त पीपल का , जो देता था छावं गली के धोबी और फेरी वालों को ...वो धोबी जो अपनी विरासत , पुरानी   मेज़ और इस्त्री पीतल की , अपने वारिस को देकर चला गया खुदा के पास अपने ...

वो बड़ा घना दरख़्त पीपल का जो देता था सुकून से लबरेज़ हवा रात को छत के बिस्तर पर ..और बिस्तर जिस पर पड़ते ही नींद चादर की मानिंद ढक लेती थी...वो नींद भी अब नहीं रही

वो बड़ा घना दरख़्त पीपल का , जिसपे डलता था झूला ,सावन का और देते थे ताई - चाची को पींग
गली के बच्चे सभी ....और तेज़ , और तेज़ की आवाज़ आती थी ...वो सावन भी कहाँ रहा बाकी  ...
वो झूला भी अब नहीं रहा ...वो झूला, जो ले जाता था घर के चबूतरे से मस्जिद की छत तक ....वो मस्जिद जिसके लोबान की खुशबू जब शाम ढले घर की आरती की घंटियों से मिलती थी, तो प्रसाद के बताशों का मजा दुगना कर देती थी ...वो अज़ान... वो घंटियाँ....वो बताशे ,भी अब नहीं रहे

वो बड़ा घना दरख़्त पीपल का ...मेरी यादों को मेरी उम्र के साथ ....बूढ़ा करता गया ''.


यादों को सहेजने की एक चाह के साथ ...आज के लिए बस इतना ही ...

अपना ख्याल रखियेगा .....

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