सोच ( अपनी-अपनी )

प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,

विगत दिवाली की शुभकामनायें ...यूँ भी देश के कुछ प्रान्तों में तो दिवाली आगामी एकादशी तक मनाई जाती है ..दिए और रोशनियाँ जलाकर , खैर चलिए शुभकामनायें तो शुभ की कामना से ही दी जाती हैं तो इतने विस्तार की जरूरत नही है ...

इस बार की दिवाली घर से बाहर दोस्तों , रिश्तेदारों के साथ मिलकर मनाने का अवसर मिला ...मिला इसलिए कि हमारी परम्परागत सोच तो हमे दिवाली अपने घर की ही करने की प्रेरणा देती है लेकिन कुछ कारण ऐसे बने की जाना जरूरी हो गया और ये नया अनुभव हाथ लगा ...कि अपनों से मिलना ,समय साथ गुजारना ,लीक से हट के भी त्यौहार मनाना कभी-कभी सुखद होता है .

इतेफाक से देश की राजधानी में दिवाली की रात गुजारी ...जहाँ आतिशबाजी बेचने पर सरकारी रोक थी ...और उसी वजह से उम्मीद थी की पटाखों की कर्णभेदी ध्वनि और उनसे निकलने वाला घोर प्रदूश्नकारी काला धुंआ भी नहीं झेलना पड़ेगा ....पर अफ़सोस लाख प्रगतिशील होने , आधुनिक लोगों से भरा होने के बावजूद ये शहर भी उन आम शहरों की तरह ही पेश आया जो की छोटे और पिछड़े माने जाते हैं ..यानि की पटाखे चले और( इस बात पर कि रोक क्यों लगायी गयी )उस उम्मीद से कुछ ज्यादा ही चले जो रोक लगाने से बंधी थी  ,दुसरे प्रदेशो से लाकर चलाये गए ...आश्चर्य इस बात का कि बच्चों और बड़ो ने नाक , मुहं को मास्क से ढककर इस अत्यंत शुभ और परम्परागत कार्य को एक तरह की तस्करी करके अंजाम दिया ...लेकिन क्यों ???? मेरे व्हात्सप्प ग्रुप के संदेशों से तो मुझे ये ही समझ आया की ये निपट और कोरी धर्मान्धता के चलते और एक विवादस्पद बहस के कारण किया गया ...इसमें अपने और अपनों के स्वास्थ्य , प्रदुषण के विस्तार , उसके लम्बी अवधि के अस्वस्थकर परिणामों आदि-आदि को सिर्फ धर्म परायण होने के कारण ही नहीं नाकारा गया या उनकी अवेहलना की गयी या अपने हित को दावं पर लगाया गया अपितु ये एक छोटी या विकृत मानसिकता का परिचायक रहा, जिसने सही-गलत की सोच से ऊपर उठकर काम किया ...हम सरकारी हर कदम को धर्म के तराजू पर तोलते हैं ...और हमारी इसी सोच का फायदा नेता - मंत्री भी भरपूर उठाते हैं ..या कहिये कि इसी पर अपना चूल्हा भी जलाते हैं ..ईमानदारी से सोचियेगा तभी आप गाहे-बगाहे राजनीति का धार्मिक मोहरा बनने का दर्द समझ पाएंगे ...

अपने बुजुर्ग रिश्तेदारों , युवा साथियों और हमउम्र दोस्तों को इस सरकारी आदेश की अवेलहना पर रोष प्रकट करते देखा ...ज्यादातर सभी ने भविष्य पर इसके दुष्प्रभाव और खतरनाक अंजाम को ध्यान में रखा ...मतलब ये की जब तक धर्म कर्म-काण्ड, भेद-भाव और तेरे-मेरे से ऊपर उठकर एक परोपकारी सोच ,परस्पर प्रेम ,सम्मान और सहिष्णुता में तब्दील नहीं होगा ...हमेशा वर्तमान पर भारी और भविष्य के लिए दुखदायी ही रहेगा ...ये सिर्फ दिवाली मनाने वालो पर ही लागू नहीं होता बल्कि ईद मनाने वालों पर भी होता है...

धर्म को सोच विचार और अच्छे कार्य करने का , समाज की उन्नति का और देश की प्रगति का माध्यम बनाईये ...अगली पीढ़ी को संतुलित सोच , सोहार्द और समंजस्य सीखाइए ...

मदर टेरेसा का ध्यान करते हुए , एक बार फिर से बधाई प्रेषित करती हूँ ...

आज के लिए बस इतना ही ...अपना ख्याल रखियेगा ...     


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