फितरत !

प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,

चन्द लाइन आपकी नज़र ...

'' कितनी अजीब है इंसान की फितरत ,
    हर अच्छी बुरी बात कुछ दिन में बन जाती है आदत !

चेहरा छुपाना पहले शौक बना ...अब प्रदुषण ने मजबूरी में तब्दील कर दिया ,
पहले जो महज़ औरतों का था शगल ..पर अब तो मर्द भी ढकतें  हैं शकल,
    क्योंकि फितरत तो न हम बदलेंगे ना ही हवा   हम उसे गन्दा करेंगे और वो हमें  ...
    और फिर यूँ जीना हमारी आदत बन जाएगी ....

पानी को ही लीजिये , अपनी फितरत के चलते हम इसे बर्बाद करतें हैं
और मौका मिलने पर वो हमें ...और अब ऐसे ही जीने की आदत बन गयी है ...

धर्म को ही देखिये ..हम उसका दुरूपयोग कर रहें हैं और वो हमारा ,
फितरत है सो सुधार हम नहीं लायेंगे ...फिर चाहे धर्म की खातिर फ़ना हो जायेगें
क्या फर्क पड़ता है ऐसे ही जीना आदत बनती जा रही है ...

पर इंसान का क्या ??? वो अपने ही जैसो पर किसलिए जुल्म ढाता है ??
क्यों हर समाचार अधर्म , कुकर्म , अन्याय , गुस्से , शोषण की ही गाथा गाता है ???
     कैसी है ये फितरत जो दिनों-दिन आदत से ज्यादा जूनून बनती जा रही है ??
     इंसानी फितरत अब बदल कर ...हैवानियत बनती जा रही है !!!!!

 आज के लिए इतना ही ...

अपना ख्याल रखियेगा ...
  

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