आखिर धर्म ही क्यों ?
प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,
अभी-अभी समाचारों में राफिया नाज़ , योग शिक्षक को लेकर ताज़ा - तरीन बहस को सुनते हुए मन अजीब से ख्यालों से भर गया ...कहा जा रहा है कि राफिया को योग छोड़ने की नसीहतें दी जा रही हैं, उनके धर्म के मुखियाओं की तरफ से ...शायद इसे एक शारीरिक क्रिया न मान कर किसी धर्म से जोड़ा जा रहा है ...
क्या मानना है आपका ?? ये तैराकी को किस धर्म की तरफ रखना चाहेंगें आप ?? शूटिंग ( निशाने बाजी ) किस की तरफ जाएगी ??
ईमानदारी से सोचियेगा क्योकिं तब आप पाएंगे कि हमारे-तुम्हारे की शाखाएं बहुत गहरे कहीं हम सब के फायदों की जड़ों से निकली हैं ...और इन जड़ों को पाला-पोसा जाता है निजीस्वार्थ की खातिर .
मेरी तरह शायद आपने भी ये गौर किया हो कि हमारे समाज में बहुत से ऐसे काम-धंधें है जिन में किसी धर्म विशेष का वर्चस्व है, लेकिन उन की उपयोगिता और मिलने वाले फायदे हर तबके और धर्म के लिए हैं . ऐसा क्या - क्या है जिसको हम सिर्फ धर्म के आधार पर बाँट सकते हैं ?? सोचिये आजकल अस्पतालों में खून खरीदा नहीं जाता , खून के बदले खून दिया जाता है ...क्या उस खून के धर्म की जांच होती है इस्तेमाल से पहले ?? शरीर दान से मिले अंगों से मृत प्राय अंग को जिलाया जाता है , तब भी क्या धर्म आड़े आता है ?? स्कूल में टीचर बिना भेदभाव सबको बराबर पढाता है तब बच्चे के धर्म के हिसाब से क्यों टीचर की मांग नहीं होती ??
जितना ज़हर अक्सर न्यूज़ चैनल पर होने वाली बहसों में उगला जाता है ,उससे कहीं ज्यादा सदभावना का प्रचार आजकल के नौजवान सोशल मिडिया पर बेहतरीन short films के द्वारा लगातार कर रहें हैं . शायद ये वो कुछ पुराने ख्यालों के प्रौढ़ या पथ-भ्रष्ट नौजवान ही हैं जो अभी न तो सही सोच अपना पायें हैं या निजी अहम से ऊपर उठ पायें हैं ...और समाज को अंग्रेजी शासन की तर्ज पर '' divide & rule ' के फार्मूले पर चलाना चाहते हैं .
'' कब, कैसे , कौन हैं वो जो रौशनी लायेंगे ,
कब हम धर्म से ज्यादा कर्म का माहौल बनाएंगे ? ,
कब किसी बात पर हम साथ खड़े होंगे ,
कब हमारे मसले धर्म नहीं धार्मिकता से जुड़े होंगे ? ,
कब हम शान से भाई-भाई के नारे को दिल से गायेंगे ,
कब हम छोटी सोच से ऊपर उठकर साथ आएंगे ?
जल्द ही समाज के इस कोढ़ से उबर पाने की दुआ के साथ ...
आज के लिए इतना ही ...
अपना ध्यान रखियेगा ...
अभी-अभी समाचारों में राफिया नाज़ , योग शिक्षक को लेकर ताज़ा - तरीन बहस को सुनते हुए मन अजीब से ख्यालों से भर गया ...कहा जा रहा है कि राफिया को योग छोड़ने की नसीहतें दी जा रही हैं, उनके धर्म के मुखियाओं की तरफ से ...शायद इसे एक शारीरिक क्रिया न मान कर किसी धर्म से जोड़ा जा रहा है ...
क्या मानना है आपका ?? ये तैराकी को किस धर्म की तरफ रखना चाहेंगें आप ?? शूटिंग ( निशाने बाजी ) किस की तरफ जाएगी ??
ईमानदारी से सोचियेगा क्योकिं तब आप पाएंगे कि हमारे-तुम्हारे की शाखाएं बहुत गहरे कहीं हम सब के फायदों की जड़ों से निकली हैं ...और इन जड़ों को पाला-पोसा जाता है निजीस्वार्थ की खातिर .
मेरी तरह शायद आपने भी ये गौर किया हो कि हमारे समाज में बहुत से ऐसे काम-धंधें है जिन में किसी धर्म विशेष का वर्चस्व है, लेकिन उन की उपयोगिता और मिलने वाले फायदे हर तबके और धर्म के लिए हैं . ऐसा क्या - क्या है जिसको हम सिर्फ धर्म के आधार पर बाँट सकते हैं ?? सोचिये आजकल अस्पतालों में खून खरीदा नहीं जाता , खून के बदले खून दिया जाता है ...क्या उस खून के धर्म की जांच होती है इस्तेमाल से पहले ?? शरीर दान से मिले अंगों से मृत प्राय अंग को जिलाया जाता है , तब भी क्या धर्म आड़े आता है ?? स्कूल में टीचर बिना भेदभाव सबको बराबर पढाता है तब बच्चे के धर्म के हिसाब से क्यों टीचर की मांग नहीं होती ??
जितना ज़हर अक्सर न्यूज़ चैनल पर होने वाली बहसों में उगला जाता है ,उससे कहीं ज्यादा सदभावना का प्रचार आजकल के नौजवान सोशल मिडिया पर बेहतरीन short films के द्वारा लगातार कर रहें हैं . शायद ये वो कुछ पुराने ख्यालों के प्रौढ़ या पथ-भ्रष्ट नौजवान ही हैं जो अभी न तो सही सोच अपना पायें हैं या निजी अहम से ऊपर उठ पायें हैं ...और समाज को अंग्रेजी शासन की तर्ज पर '' divide & rule ' के फार्मूले पर चलाना चाहते हैं .
'' कब, कैसे , कौन हैं वो जो रौशनी लायेंगे ,
कब हम धर्म से ज्यादा कर्म का माहौल बनाएंगे ? ,
कब किसी बात पर हम साथ खड़े होंगे ,
कब हमारे मसले धर्म नहीं धार्मिकता से जुड़े होंगे ? ,
कब हम शान से भाई-भाई के नारे को दिल से गायेंगे ,
कब हम छोटी सोच से ऊपर उठकर साथ आएंगे ?
जल्द ही समाज के इस कोढ़ से उबर पाने की दुआ के साथ ...
आज के लिए इतना ही ...
अपना ध्यान रखियेगा ...
bilkul sahi kaha ma'am apne
ReplyDeletedhanywad Akash .
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