लक्ष्मी अथवा सरस्वती ! .... एक बार में एक

प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,
आज यूँही बैठे बैठे बचपन की कुछ बातें जो पहले मात्र जिज्ञासा थी और उनकी पारम्परिक व्याख्या अजीब लगती थी अब सही-सही समझ आती हैं ...मसलन कहा जाता था कि ' जितना घना फलदार पेड़ उतना ही झुका हुआ ',
या फिर ' जहाँ लक्ष्मी हैं वहां सरस्वती नहीं '...पर बचपन में ये बातें confuse करती थीं ...
नारियल और पपीता भी तो फलदार है पर झुके हुए तो नहीं ,
और जो लोग ज्यादा पढ़े डिग्रीधारी हैं वो ही तो ऊंची नौकरी में होते हैं या बड़े व्यापारी होते हैं .....

पर अब लगता है कि ये तो मात्र उपमाएं हैं और ''अपवाद तो हर क्षेत्र में होते ही हैं ''....अब देखिये फिल्म स्टार तो बहुत हैं लेकिन ' सत्यमेव जयते ' तो एक ने ही बनाया ... या फिर ' नर्मदा आन्दोलन , चिपको आन्दोलन ' आदि भी हर कोई नहीं चलाता ...तो मतलब ये कि हर फलदार पेड़ झुका नहीं होता कुछ तने और अकड़े भी होते हैं ,

इसी तरह डिग्रीधारी होना न तो ये प्रमाणित करता है कि आप ऊंचे पद के दावेदार हैं और न ही ये की आप पर सच में सरस्वती की कृपा है ... हाँ ये जरूर है कि डिग्रीयों की बहुतायत आपको आत्मप्रशंसा के योग्य बना देगी और कहीं आप जुगाड़ (सही - गलत ) से या सही सच्चे ढंग से ही विदेश से डिग्री अर्जित कर लाये हो तो  आत्मप्रशंसा से ज्यादा ये आपको आत्माभिमान का रास्ता दिखा देगी ...
ईमानदारी से सोचियेगा तभी अपने आस-पास आप को जरूर ही ऐसा कोई न कोई शख्स जरूर मिल जायेगा जो किसी एक ही क्षेत्र में डिग्रीधारी होने के बावजूद सर्वज्ञ होने का दावा कम्पुटर से प्राप्त ज्ञान के दम पर करता है...
ठीक है कंप्यूटर का ज्ञान भी अपने में एक विशेषता है..... पर क्या  ये हमे उस क्षेत्र का ज्ञानी ( जानकारी के साथ साथ उसके व्यहवारिक ज्ञान और उसके सही तरह के उपयोग की पूरी जानकारी रखने वाला अनुभवी ) बना सकता है ???

ये लक्ष्मी की कृपा का ही फल है कि धनवान या फिर धनवान बनने की चाह रखने वाला व्यक्ति अपने को आदर्श दिखाते हुए सरस्वती के व्यापर का धंधा समाज की प्रगति के उद्देश्य (जिसमें स्वयं की प्रगति ज्यादा महत्तव रखती है ) शुरू करता है ...और इस का नाम रखता है ..अमुक -अमुक विद्यालय ...और फिर जिस अर्जित डिग्री और ज्ञान के बल पर वो इस कार्य में अग्रसर हुआ था उसका भरपूर हनन करते हुए सरस्वती को छोड़ लक्ष्मी का उपासक हो जाता है ...याद रखियेगा '' अपवाद हर क्षेत्र में हैं "... पर वाकई नतीजा उस बात को सच साबित करता है कि '' जहाँ लक्ष्मी है वहां सरस्वती को स्थान छोटा हो जाता है ''... क्योंकि जहाँ सरस्वती हैं वहां विचारों , परोपकार , सम्मान ,सदव्यवहार और मूल्यों (values ) को अधिक महत्व मिलता है

और सबसे ज्यादा हास्यास्पद ये है कि जिस प्रकार रात - दिन खून पसीना एक करके दूसरों  का घर बनाने वाला मजदूर अक्सर झोपड़ों या कच्चे मकानों में जिन्दगी गुजार देता है ..उसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में करियर बनाने वाला शिक्षक भी अपना स्कूल नहीं खोलता दूसरों की नौकरी ही करता रह जाता है ...शायद इसलिए कि उसके अंदर की सरस्वती ( knowledge ) उसे अपनी ज्ञान देने की कला को व्यापार नहीं बनाने देती ...''पर अपवाद हर कहीं हैं ''...ये दुर्भाग्य  ही है कि चार किताबें पढकर हर कोई अपने को टीचर ही मानने लगता है और बेचारा टीचर जो हर व्यवसाय , ज्ञान और करियर की नींव रखता है कभी अपने खुद के व्यवसाय के अलावा और चीजों में दखल नहीं दे पाता ...वरना तो स्कूल खोलकर शिक्षकों को अपने मुताबिक चलाने वाले स्कूल मालिक ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपनी कॉलेज की पढाई पूरी भी नहीं की ...
या फिर योगी /संत /सजा याफ्ता / न्यायालयों से अपराधिक घोषित  निम्न शिक्षा स्तर वाले नेता /राजनेता /मंत्री / उच्च शिक्षा प्राप्त IAS/ IPS को निर्देश देते हैं ...


पर यहाँ एक और कहावत याद आती है ' खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे '...दुनिया ऐसे ही चलती आई है और एक बार में एक ही देवी की उपासना सम्भव भी है ...पर इस बात की बहुत संतुष्टि है कि मेरा ज्ञान मुझे दम्भी , क्रूर ,
शोषक और मतलबपरस्त नहीं बनाता ...

इसी शुभेच्छा के साथ कि आपकी मनचाही देवी आपका वरण करें ...आज के लिए इतना ही ..


अपना ख्याल रखियेगा ...

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