दहेज़ बनाम बढ़िया शादी

 प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,

मुझे पूरा भरोसा है कि अपने ही घर में या आस-पास आपने भी ऐसे किशोर और व्यस्क युवक युवतियों को जरूर नोटिस किया होगा जो वर्तमान समय के प्रचलित hair styles, fashion , accessories etc से प्रभावित दिखते होंगे , साफ़ शब्दों में जिनको  फिल्मो के हीरो -हीरोइन के जैसा दिखने बनने का चाव होगा ...और इसके पीछे उनकी खुद की कद-काठी , रूप-रंग या अमीर-गरीब होना मायने नहीं  रखता ... कुल  मिलाकर सपने  
तो सब देखते हैं और उसमें कोई निजी खामी या कमी आड़े नही आती है ....
आज के समय में अगर हम बाज़ार की बात करें तो आप देखेंगे कि बाज़ार के लगभग 90% ITEMS सिर्फ सपनों को हकीकत में बदलने का झांसा मात्र हैं ... फिर चाहे वो नकली गहने हों , सौन्दर्य -प्रसाधन हों , सस्ते दामों पर मिलने वाले FANCY DRESSES हों , शरीर को ताकत , सौष्ठव प्रदान करने वाली , वजन या लम्बाई बढाने वाली गोली या टोनिक कुछ भी हो ... सब इन्सान के सपनों का सौदा ...और कहीं इस होड़ और सपनो से भरी दुनिया में हम हकीक़त से दूर बहुत दूर होते जा रहें हैं ....

आजकल की शादियाँ देखी आपने , कितने गर्व से हम एक - दूसरे को एक भव्य , महंगी और बिलकुल फिल्मों के सेट जैसी शादी का ब्यौरा पूरी DETAIL के साथ इस तरह देते हैं जैसे की दूसरे के लिए वो कोई दुर्लभ स्वप्न ही हो ...जबकि मैंने ये गौर किया है कि आज के समय में अपनी चादर के बाहर जाकर हर पिता विवाह-घर में अच्छी व्यवस्था सजावट , रोशनियों और खान -पान के साथ ही शादी को अंजाम देता है ...यहाँ अपवाद ये है कि इन शादियों में भी एक बहुत बड़ा अंतर STANDARD का होता है ..पर बाप के सपने और दूल्हा-दुल्हन की चाहतें दोनों जगह के बाजारों को गर्म रखती हैं ...
लेकिन क्या कभी अपने इसके पीछे की असलियत पर ध्यान दिया ...शादी का आयोजन एक प्रतिस्पर्धा बन गया है और इसने सभी के सपनों को उकसाया है ... और कहीं न कहीं हम अनजाने या जानबूझकर ही इस चक्रव्यूह में फंस रहे हैं ...ईमानदारी से सोचियेगा तभी आप भी मेरी बात का समर्थन करेंगे कि एक अच्छी दावत और बढ़िया शादी लड़की के बाप पर परोक्ष रूप से डाला जाने वाला दवाब है ... तो क्या ये दहेज़ का LATEST VERSION है ... क्या अब हम ये मान लें कि दहेज़ प्रथा खत्म हो गयी है ..हाँ लड़की की शादी करनी है तो पिता के पास अच्छी शादी करने की औकात होनी चाहिए ... कितने दोगले हो गए हैं हम ,कहाँ तो आधुनिक और प्रगतिशील होने और लड़कियों को समाज में  बराबरी का अधिकार देने और उनकी भागीदारी की महत्ता की बात करतें हैं ...लेकिन दूसरी तरफ शादी के समय असली business men की तरह सामने वाले की जेब परख कर ही सौदा करते हैं ... आज गुणों पर गहने भारी पड़ते हैं , आज संस्कारों पर ब्रांडेड सामान भारी पड़ता है ..

सोचकर देखिये बढ़िया शादी के नाम पर कहीं हम कुछ घंटों के शोर-शराबे , पीने - पिलाने और ढेरों पकवानों की बर्बादी और चंद घंटो की सजावट के लिए किसी पिता की कमर और उसकी बेटी के सपनों को तो नहीं तोड़ रहे हैं ... हम दहेज़ के दूसरे संस्करण को तो नहीं अपना रहे हैं ...

शादी वो जो लड़की को सम्मान और परिवार दिलाये और लड़के को जीवनसाथी नाकि ये सामानों का आदान-प्रदान और सामूहिक शोशे बाजी हो
...

आज के लिए बस इतना ही ...

अपना ख्याल रखियेगा ...

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