हम हिन्दुस्तानी बने !
प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,
बड़ी ही मजेदार लगी मुझे ये घटना जब हाल-फिलहाल में काम पर लगाई गयी मेरी कामवाली बाई ने (जिसे मैंने काम पर लगाने से पहले सिर्फ ईमानदारी, साफ़ काम करने और साफ़ -सुथरा आने की शर्त रखी थी ) काम के तीसरे दिन मुझसे बड़ी बेबाकी से पूछा ''दीदी आप कौन जात हैं ?'' एक क्षण को तो मुझे लगा कि शायद मुझे ही सुनने में गलती हुई है ..जब मैंने पूछा ,'' क्या बोल रही हो ?'' उसने कहा ''आप कौन जात हैं ?'' पूछने पर पता चला कि मेरे ही कॉलोनी में रहने वाली एक महिला ( सम्भ्रांत , अपने स्वयं के स्कूल की संचालिका एवं खुद को बड़े खानदान और काफी सुसंस्कृत परिवार का मानने वाली ) , जिनके यहाँ मेरी बाई पहले से काम करती है , ने
बाई को ये कहकर धमकाया कि ,'' पता नहीं कौन जात हैं , क्या -क्या खाते होंगे उनके घर के बर्तन धोकर आओगी तो मैं काम नहीं कराऊंगी , हम लोग पूजा-पाठ करने वाले हैं ''. मैं इस बात की शर्त लगा सकती हूँ कि अपने स्कूल में प्रवेश देने के समय , टीचरों को नौकरी देते समय , डॉक्टर से दवाई लिखवाते समय या फिर होटलों या ठेलों पर पसंदीदा खाने की चीज़ों का आनंद लेने के पहले, या फिर शादी-ब्याह में दावत उड़ाते समय वो किसी की जात कतई नहीं पूछती होंगी .....कारण आप खुद समझ सकते हैं ......
उस महिला का नाम बाई ने जोर डालने पर बताया था क्योंकि उनके यहाँ काम के पैसों के साथ दिए जाने वाले दुसरे आकर्षक प्रलोभन उस बाई को दूसरे घर के काम से मिलने वाले पैसों से ज्यादा उपयोगी लगते हैं , ऐसा सर्वविदित है .
खैर थोडा गरमी और तल्खी के साथ जब मैंने बाई को कहा कि मेरी जात और मेरा खान -पान अगर उसके काम की शर्त है Iतो वो चाहे तो काम छोड़ सकती है .... वजह जो भी रही हो बाई ने मेरे घर का काम नही छोड़ा .
पर २० दिन के उसके कार्यकाल में आखरी दिन इस बार मैंने ही एक भारी भूल कर दी ..... जब मैंने उससे कह दिया कि कल थोडा मेरे एक पैर में तेल लगा दे (यकीं मानिये ये body massage बिलकुल नही था ) बस यहीं मैंने ये गलती कर दी कि अच्छी जात की उस बाई को ( जिसके अनुसार वो घर , जमीन वाली और नीची जात नही है)
ऐसा छोटा काम करने को कहा ...नतीजा उसने मेरे घर काम करने से साफ़ मना कर दिया ...
ये किस्सा बताने का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष नही बल्कि अपने समाज के पिछड़ेपन की नींव की जड़ पर रौशनी डालने की एक कोशिश है .... ईमानदारी से सोचियेगा तभी आप पाएंगे की हमारे समाज में जातिवाद की बड़ी गहरी पैठ है और आप या तो खुद या फिर आस-पास के लोगों में जातिवादी संस्कृति के चलते बहुत से ऐसे क्रिया-कलापों में लिप्त होते होंगे या देखते होंगे जो सामान्य रूप से एक प्राचीन परम्परा का अन्धानुकरण ही है, जिसके वास्तविक उपयोग और महत्ता को आप भी ठीक से शायद नही जानते होंगे ...अपवाद हर कहीं हैं ....
मेरी अपनी राय ये है कि समाज को ज्यादा जरूरत दूसरों को बर्दाश्त करने , दूसरी संस्कृति की अच्छइयो को आत्मसात करने , अपने विचारों और क्रिया -कलापों में थोड़ी लचक लाने और जात-पात के जमीनी स्तर से उठ कर कुछ बड़ा , परिपक्व और प्रगतिशील सोचने की है ....
मन्दिर / मस्जिद निर्माण , जातिगत आरक्षण , जातिवादी आन्दोलन , धार्मिक शक्ति प्रदर्शन , गौ रक्षा आन्दोलन इत्यादि मुद्दे घटते जल-स्तर , बढ़ते प्रदूषण , शिक्षा के घटते स्तर , युवाओं के नैतिक पतन , नौकरियों के कम अवसर , नामी -गिरामी लोगों द्वारा किये जा रहे घोटालों , प्रतियोगी परीक्षाओं के घोटालों इत्यादि से कभी भी बड़े या जरूरी नहीं हो सकते ...
समझदार आप भी हैं ...और समाज का हिस्सा भी हैं ...आपकी भी आगामी पीढियां इसी धरती और समाज का वरण करेंगीं ...पसंद आपकी क्योंकि आपका बोया आने वाले समय में उन्हें ही काटना है ...
अपनी अगली पीढ़ी के लिए शुकामनाओं सहित आज के लिए इतना ही ...
अपना ख्याल रखियेगा ....
बड़ी ही मजेदार लगी मुझे ये घटना जब हाल-फिलहाल में काम पर लगाई गयी मेरी कामवाली बाई ने (जिसे मैंने काम पर लगाने से पहले सिर्फ ईमानदारी, साफ़ काम करने और साफ़ -सुथरा आने की शर्त रखी थी ) काम के तीसरे दिन मुझसे बड़ी बेबाकी से पूछा ''दीदी आप कौन जात हैं ?'' एक क्षण को तो मुझे लगा कि शायद मुझे ही सुनने में गलती हुई है ..जब मैंने पूछा ,'' क्या बोल रही हो ?'' उसने कहा ''आप कौन जात हैं ?'' पूछने पर पता चला कि मेरे ही कॉलोनी में रहने वाली एक महिला ( सम्भ्रांत , अपने स्वयं के स्कूल की संचालिका एवं खुद को बड़े खानदान और काफी सुसंस्कृत परिवार का मानने वाली ) , जिनके यहाँ मेरी बाई पहले से काम करती है , ने
बाई को ये कहकर धमकाया कि ,'' पता नहीं कौन जात हैं , क्या -क्या खाते होंगे उनके घर के बर्तन धोकर आओगी तो मैं काम नहीं कराऊंगी , हम लोग पूजा-पाठ करने वाले हैं ''. मैं इस बात की शर्त लगा सकती हूँ कि अपने स्कूल में प्रवेश देने के समय , टीचरों को नौकरी देते समय , डॉक्टर से दवाई लिखवाते समय या फिर होटलों या ठेलों पर पसंदीदा खाने की चीज़ों का आनंद लेने के पहले, या फिर शादी-ब्याह में दावत उड़ाते समय वो किसी की जात कतई नहीं पूछती होंगी .....कारण आप खुद समझ सकते हैं ......
उस महिला का नाम बाई ने जोर डालने पर बताया था क्योंकि उनके यहाँ काम के पैसों के साथ दिए जाने वाले दुसरे आकर्षक प्रलोभन उस बाई को दूसरे घर के काम से मिलने वाले पैसों से ज्यादा उपयोगी लगते हैं , ऐसा सर्वविदित है .
खैर थोडा गरमी और तल्खी के साथ जब मैंने बाई को कहा कि मेरी जात और मेरा खान -पान अगर उसके काम की शर्त है Iतो वो चाहे तो काम छोड़ सकती है .... वजह जो भी रही हो बाई ने मेरे घर का काम नही छोड़ा .
पर २० दिन के उसके कार्यकाल में आखरी दिन इस बार मैंने ही एक भारी भूल कर दी ..... जब मैंने उससे कह दिया कि कल थोडा मेरे एक पैर में तेल लगा दे (यकीं मानिये ये body massage बिलकुल नही था ) बस यहीं मैंने ये गलती कर दी कि अच्छी जात की उस बाई को ( जिसके अनुसार वो घर , जमीन वाली और नीची जात नही है)
ऐसा छोटा काम करने को कहा ...नतीजा उसने मेरे घर काम करने से साफ़ मना कर दिया ...
ये किस्सा बताने का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष नही बल्कि अपने समाज के पिछड़ेपन की नींव की जड़ पर रौशनी डालने की एक कोशिश है .... ईमानदारी से सोचियेगा तभी आप पाएंगे की हमारे समाज में जातिवाद की बड़ी गहरी पैठ है और आप या तो खुद या फिर आस-पास के लोगों में जातिवादी संस्कृति के चलते बहुत से ऐसे क्रिया-कलापों में लिप्त होते होंगे या देखते होंगे जो सामान्य रूप से एक प्राचीन परम्परा का अन्धानुकरण ही है, जिसके वास्तविक उपयोग और महत्ता को आप भी ठीक से शायद नही जानते होंगे ...अपवाद हर कहीं हैं ....
मेरी अपनी राय ये है कि समाज को ज्यादा जरूरत दूसरों को बर्दाश्त करने , दूसरी संस्कृति की अच्छइयो को आत्मसात करने , अपने विचारों और क्रिया -कलापों में थोड़ी लचक लाने और जात-पात के जमीनी स्तर से उठ कर कुछ बड़ा , परिपक्व और प्रगतिशील सोचने की है ....
मन्दिर / मस्जिद निर्माण , जातिगत आरक्षण , जातिवादी आन्दोलन , धार्मिक शक्ति प्रदर्शन , गौ रक्षा आन्दोलन इत्यादि मुद्दे घटते जल-स्तर , बढ़ते प्रदूषण , शिक्षा के घटते स्तर , युवाओं के नैतिक पतन , नौकरियों के कम अवसर , नामी -गिरामी लोगों द्वारा किये जा रहे घोटालों , प्रतियोगी परीक्षाओं के घोटालों इत्यादि से कभी भी बड़े या जरूरी नहीं हो सकते ...
समझदार आप भी हैं ...और समाज का हिस्सा भी हैं ...आपकी भी आगामी पीढियां इसी धरती और समाज का वरण करेंगीं ...पसंद आपकी क्योंकि आपका बोया आने वाले समय में उन्हें ही काटना है ...
अपनी अगली पीढ़ी के लिए शुकामनाओं सहित आज के लिए इतना ही ...
अपना ख्याल रखियेगा ....
شركة تنظيف موكيت بالرياض الصفرات
ReplyDeleteشركتنا شركة تنظيف بالرياض الصفرات متخصصه في أعمال التنظيف للفلل والمنازل والبيوت والشقق والمجالس والموكيت والكنب والاثاث والخزانات وايضا فى مجال الكشف والعزل ونقل الاثاث افضل شركة تنظيف موكيت بالرياض بالمملكه العربيه السعوديه تخصصنا أيضا في جميع الخدمات
شركة تنظيف فلل بالرياض-شركة الصفرات لتنظيف فلل بالرياضشركة تنظيف فلل بالرياض الصفرات- الصفرات لتنظيف فلل بالرياض
شركة تنظيف مساجد بالرياض
شركة تنظيف مساجد بالخرج
Sunder,
ReplyDeleteKrutidev to unicode font converter
Dhanywad,
Delete