Human Resource (मानव संसाधन )





प्यार भरा नमस्कार दोस्तों,
पिछले दिनों डॉ अब्दुल कलम का एक भाषण youtube पर सुना , जिसकी एक पंक्ति दिल में बैठ सी गयी , जिसका मतलब कुछ यूँ था कि ,भारत में हम किसी की योग्यता का उपयोग नहीं करते उसे निचोड़ लेते हैं ! ,.... वैसे ये बात मानव संसाधन का दोहन प्राकृतिक संसाधन से भी अधिक क्रूरता से करने की हमारी मानसिकता को परिलक्षित करती है ... 
एक चुटकुले के माध्यम से इस शोषण की प्रवृति की तरफ ध्यान ले जाना चाहूंगी कि... मर कर जब कई लोग यमराज के दरबार में पहुचें तो चित्रगुप्त जी को उनके कर्मों के हिसाब से स्वर्ग नर्क में भेजने का काम सौंपा गया , पहले आदमी ने बताया की वो उद्योगपति था खूब पैसा कमाया जीवन में और दान पुन्य भी किया लेकिन उसकी बात पूरी होने से पहले ही यमराज ने आदेश दिया कि उसे नर्क भेजा जाये क्योंकि स्वर्ग तो उसने धरती पर ही भोग लिया था , दुसरे व्यक्ति ने बताया कि वह किसान था और तीनो फसले उगाता था और अपनी सामर्थ्य के अनुसार गावं के गरीब परिवारों को कुछ अनाज दान देता था , उसे स्वर्ग में भेजा गया ,तीसरा व्यक्ति जो अत्यंत क्षीण और डरा हुआ सा था उसने बताया क्योंकि वो एक सरकारी शिक्षक था सो ज्यादा आमदनी तो थी नहीं सो वो दान पुण्य नहीं कर पाया , लेकिन नौकरी पूरी ईमानदारी से की उसने पोलियो की दवा पिलाने , वोटर लिस्ट बनाने , मध्याहन भोजन बनाने , बिना पंखों और बेंचों के स्कूल में पढाने , जनगणना करने जैसे सभी कामों को कतई लगन से पूरा कर के दिया था ..इससे पहले के वो कुछ और कहता यमराज ने कहा ,“ इसे स्वर्ग भेजो ,नर्क तो ये भोग आया है “ !
चुटकुला यकीनन पूरा सच नहीं होता पर सच से प्रेरित जरूर होता है .. पर आज का समय सच और हास्य में अंतर नही करता , मशीनी जीवन , टारगेट पूरा करने की होड़ , सरकारी तंत्रों में फैली मक्कारी और भ्रष्टाचार ने सरकारी व्यवसायों , तंत्रों और इकाइयों के निजीकरण को हवा दी है और इस निजीकरण ने कार्यप्रणाली को जूसर मशीन बना दिया है जो अपनी अच्छी तनख्वाह के बदले इन्सान को न सिर्फ उसकी योग्यता और हुनर के काम बल्कि और दूसरे कामों में जबरन लगाकर उसे तनाव , निराशा और बिमारियों की और धकेल देती है .... सरकारी कार्यालयों में चयन यूँ तो बहुत उच्च स्तरीय और कठिन माने जाता हैं लेकिन पता नहीं क्या कमाल है इस व्यवस्था का , कि अधिकतर (अपवादों को छोड़कर ) कर्मचारी कामचोर , बहानेबाज और अकर्मण्य ही दिखतें हैं ... पर कुछ सच पता चले जब एक बार एक पुलिस कर्मचारी और एक  सरकारी अस्पताल की नर्स से उनके काम के अनुभव सुने तो पता चला की कम तनख्वाह , अम्नोवैज्ञानिक काम के घंटे , अनियोजित कार्यभार इत्यादि ने उनके काम करने की इच्छा , अपने काम के प्रति निष्ठां , ईमानदारी को हर बितते दिन के साथ घटाया ही है  ...
वो बात अलग है कि विदेशों द्वारा स्थापित अथवा विदेशी सहयोग से स्थापित निजी उद्योगों , कार्यालयों आदि ने अपने कर्मचारियों का शारीरिक मानसिक संतुलन बनाये रखने और काम के प्रति उनका समर्पण बनाये रखने के उद्देश्य से उन्हें जिम , क्लब, पर्यटन और कई चीजों से जोड़ा है , काम के घंटे , ऑफिस के माहौल आदि पर भी बारीकी से ध्यान दिया गया है ... पर अपवाद हर जगह हैं छोटे , स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के उद्योग , कार्यालय , विद्यालय आदि अभी भी मानव शक्ति के दोहन और शोषण में ही जुटे हैं ...
हम प्राकृतिक सम्पदा के रक्षण संरक्षन की बात करते हैं , उनकी सिमित उपलब्धता की बात करते हैं ...और दूसरी तरफ मानव सम्पदा का भरपूर दोहन करते हैं ...शायद इसलिए कि जरूरतें एक मानव को शोषण करने और दुसरे मानव को शोषित होने के लिए मजबूर करती हैं ...

कभी हम सम्वेदनशील हो जाये ... कभी निजी स्वार्थ से ऊपर उठ पायें !

इसी उम्मीद के साथ ...आज के लिए इतना ही !

अपना ख्याल रखियेगा !


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