सापेक्षता ( a positive thought )



प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,
अजीब कोफ़्त सी होती है और मुझे ही नहीं यकीनन आप में से बहुत से लोगों को मेरे जैसी ही feelings आयी होंगी ...जब आपने भी समाचार पत्र में पढ़ा होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार का चुनावी घोषणा पत्र कहता है कि सरकार मंदिर – मठों के जिर्नोद्धार में 500 करोड़ और नौकरियों के क्षेत्र में 250 करोड़ का खर्च करेगी , पूरे 3000 करोड़ का बजट गौ हत्या रोकने का होगा I  
मैं पहले भी इस पंक्ति को लिख चुकी हूँ शायद जो मैंने कहीं पढ़ी थी और जिसने मुझे बहुत प्रभावित भी किया था ...        ’’आप अपने बच्चों को भविष्य के लिए क्या देना चाहेंगे ?????
मंदिर , मस्जिद , चर्च और गुरुद्वारों में सिमटा समाज जो अपने – अपने धर्म और संस्कृति के संरक्षण को सर्वोपरी रखेगा या एक ऐसा समाज जहाँ उन्नत शिक्षा व्यवस्थित विद्यालयों में हो , विकसित स्वास्थ्य सेवाएं हों और रोजगार और व्यापार के पर्याप्त अवसर हों सामाजिक भेद-भाव और विघटन का मार्ग संकुचित हो . सही में एक ऐसा समाज जहाँ नैतिकता और मानवता मुख्य धर्म हों ‘ .

आप में से बहुत से लोगों का मुझसे अथवा इस विचार से असहमत होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है ..आज सोशल मिडिया पर धर्म के नाम पर , राजनीति के नाम पर निम्न-कोटि की  ,अत्यंत अभद्र टिप्पणियां और गली-गलौज तक पढकर ...मेरी बात से असहमति मुझे कतई आश्चर्य में नहीं डालेगी .

पर क्या ये है हमारा वैचारिक स्तर ?? ये हमारी संस्कृति है ?? क्या हमारी शिक्षा – दीक्षा या हमारी आधुनिकता ये ही है ?? नाराजगी जाहिर करने के लिए राहुल गाँधी की माँ पर भद्दी टिप्पणियां , छिछोरे संवाद , मुस्लिम नेताओं पर निम्न स्तर की बयानबाजी , निचले स्तर की उपमाएं  क्या इतनी जरूरी है ??


मैं किसी भी राजनितिक पार्टी के पक्ष या विपक्ष में नहीं अपितु समाज की सबसे अहम इकाई ‘मानवजाति’ के मूल्यों , नैतिकता और सोच में आ रही गिरावट की बात कर रही हूँ ..और चूँकि हमारी सोच संकुचित और धर्म , जात-पात और राजनीतिक पार्टियों के मुद्दोंसे प्रभावित है इसलिए हमारी अभिव्यक्ति छोटे और निम्न स्तर की है ... ये शायद इसलिए कि हम अंदर से कमजोर हैं , हममें आत्मविश्वास का अभाव है , आत्मशक्ति की कमी है इसीलिए आगे बढ़ने के लिए या धर्म , या जात-पात ( आरक्षण ) या राजनीतिज्ञों की शरण लेतें हैं ,...... गलती पूरी तरह हमारी नही है हमारी शिक्षा व्यवस्था ही ऐसी है कि हम स्वावलंबी और सक्षम नहीं बन पाते , और शिक्षा ऐसी इसलिए है कि सरकार अपना वर्चस्व बनाने और अधिक आंकड़ो को पूरा करने के लिए नित नयी शिक्षा नीतियों का अपने कार्यकाल में ये सोचकर समावेश करती हैं कि वोट बैंक मजबूत हो, साक्षरता का आंकड़ा ऊंचा हो शिक्षा का स्तर उसमें अधिक महत्त्व नहीं रखता है , और ऐसी शिक्षा पद्धति तैयार करती है निर्भर साक्षर (शिक्षित नहीं , क्योंकि शिक्षित की अपनी एक सोच और समझ होती है जो स्वयम और समाज की तरक्की से जुडी होती है .. मैं निजी तौर पर वैज्ञानिकों , शोधकर्ताओं इत्यादि ऐसे लोगों को शिक्षित मानती हूँ जो रों में नही बहते  ) नारेबाजी, तोड़-फोड़ , आगजनी ,पत्थरबाजी ,सरकारी सम्पत्ति (जो हमारे दिए हुए टैक्स से ही बनाई जाती है ) को नुकसान पहुंचाना उस साक्षर झुण्ड का काम है जो पढ़-लिख पाता है पर सोच समझ नही पाता कि इन हरकतों के  दूरगामी परिणाम क्या हैं ? इन आंदोलनों का सापेक्ष महत्तव क्या है ? इनमे उन्नति की जड़ें कहाँ हैं ? इनमें आगामी पीढ़ी के लिए क्या संदेश है ?

वैसे तो हम स्त्री के सम्मान को लेकर भी आन्दोलन कर रहे हैं , दूसरी ओर सोनिया गाँधी , प्रियंका चोपड़ा इत्यादि महिलाओं पर गंदे जुमले खुलकर पोस्ट कर रहे हैं ... विचार कीजिये की असल में हमारी अपनी भी कोई राय है या हम एक कमतर समाज के बीमार नागरिक हैं जिनको अच्छे , स्वस्थ और विकासशील परिवेश की जरूरत है ???


आज के लिए इतना ही .....

अपना ख्याल रखियेगा .



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