लोकतंत्र ( क्या वाकई है ?)




प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,


देख रहें हैं न आप! ....ये क्या हो रहा है !...या यूँ कहिये कि हम क्या कर रहें हैं !

हम अपने अधिकतर वर्तमान युवा वर्ग का सही मार्गदर्शन , निर्देशन और पालन-पोषण नही कर रहे हैं ...कैसे ??  क्योंकि जरूरी मुद्दों पर हम चुप हैं तो गैर जरूरी पर मुखर... मेरे लिहाज़ से रोजाना घंटों देरी से पहुचने वाली ट्रेनों , गंदे पानी की सप्लाई , जगह-जगह उखड़ी सडकों , महिलाओं पर कु-द्रष्टि और बलात्कार  , ATM से पैसा न निकल पाने की किल्लत , सरकारी अस्पतालों में मरीजों से दुर्व्यवहार या फिर दवाओं का गोरख-धंधा , वोटों की खरीद-फरोख्त ,निरंतर घटती वन सम्पदा , आधुनिकता की आड़ में नशों की लत , शिक्षण संस्थानों का अंधाधुंध व्यवसायीकरण , ऑनलाइन परोसी जाने वाली अनुचित सामग्री , सडकों पर जानवरों / वाहनों / गंदगी का अतिक्रमण , गरीबों को पेटभर भोजन का अभाव  इत्यादि इत्यादि इत्यादि ..कितनी ही चीज़ें हैं जो मंदिर निर्माण , गौ-रक्षा , किसी फिल्म पर बैन लगाने , किसी नेता की भर्त्सना करने , समाज को वर्गों और धर्मों में बाटनें की पैरवी करने ,किसी युनिवार्सिटी में लगे फोटो पर जान-माल का नुकसान करने , पत्थरबाजी करने  से ज्यादा जरूरी हैं...
हमारा इन बातों को समर्थन अगली पीढ़ी के मन में इसे उचित समझने के संस्कार भरता है ... और युवाओं के उग्र प्रदर्शन पर हमारी चुप्पी भी उनके विचारों से हमारे समर्थन को जाहिर करती है ...एक तरह से जो आप कर नहीं पाए वो अगली पीढ़ी से मौन-समर्थन के रूप में करवा रहे हैं ...

कितने अति-आवश्यक मुद्दें हैं जिन पर सबको (अपनी साक्षरता , योग्यता , समझ , जानकारी , साधनों की उपलब्धता , सामाजिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए ) सबसे पहले ध्यान देना है ...हम लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं ..हम वोट देते हैं (कई जगह , कई लोगों से किसी के पक्ष में जबरदस्ती दिलवाएं जाते हैं ) हम ताकत हैं नेताओं की , हम जरूरत हैं सरकार की , हम वोट बैंक हैं मंत्रियों के ....लेकिन हम अनभिज्ञ हैं अपनी ताक़त ,जरूरतों और अहमियत से इसी लिए भेड़ों की तरह हांक दिए जाते हैं , कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर लिए जाते हैं , हम मानव रोबोट हैं जो बौद्धिक रूप से समर्थ, परिपक्व या फिर सक्षम नही है सो मजबूर है और हमारी  नियति है की हमें इस तरह इस्तेमाल किया जाये ... वरना कभी सोचा है कि क्यों कुछ प्रदर्शनों पर सरकार बहुत उग्र नहीं होती , क्यों बहुत से आंदोलनों को हवा दी जाती है और कुछ को कुचल दिया जाता है ...मौके और जरूरत और फायदों की बात है साहब !..वरना कौन बर्दाश्त करता है कि रोबोट को सम्वेदनाएँ आ जाएँ ....कठपुतली अपने मन का नाचे .... 

देर कभी नहीं होती है ..अपने नहीं तो अपनों के लिए ,अपने नहीं तो उनके लिए जो नहीं बोल सकते ...आगे आईये , आवाज़ उठाईये , योगदान दीजिये ...इसके लिए किसी मंच , किसी पार्टी या राजनीति की नहीं, एकजुट होने और गलत को नकारने की पहल करनी होगी ...बच्चों को सुनहरे भविष्य के लिए सही , जरूरी , आवश्यक का मतलब बताईये ... क्योंकि अगर वो सम्भल गए तो बाकि तो सब बढ़िया ही बढिया !

आज के लिए इतना ही ...


अपना ख्याल रखियेगा ....

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