अवसाद / depression





प्यार भरा नमस्कार दोस्तों,

आपको भी ये ही लगता होगा कि  blood pressure और diabetes की तरह आजकल इस depression की बीमारी ने भी हर घर में अपने पाँव पसार लिए हैं ...जिसे देखो वो निराशा / depression का शिकार है ...पर ये कोई नया रोग नहीं है !  हाँ शायद चर्चा में अब आया है ... या इसके लक्षणों पर गौर अब किया गया है ... या अब इसके बारें में लोग दूसरों को बताने लगे  हैं ...
क्या आपको भी लगता है कि अब समाज में व्यक्ति-विशेष की अहमियत बढ़ी है ? अब व्यक्ति को समाज कि एक अहम इकाई के रूप में देखा जा रहा है ? तभी तो इतनी सारी संस्थाएं सामने आई हैं ... जो व्यक्ति के हक के लिए आवाज़ उठाती हैं ! जो उसे अपने खुद में भरोसा दिलाने में मदद करती हैं .समाज जागरूक हुआ है , परिवार , समाज , कार्यालयों में स्त्री –पुरुषों की मानसिक , मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाता है ...स्कूलों में काउंसलर रखे जाते हैं  ...
प्रयास सराहनीय हैं ...जीवन की गुणवत्ता बढ़ रही है और लोगों में जागरूकता आ रही है ...पर ऐसे में ये निराशा ! कुछ अजीब नही है ?? ..जब व्यक्तिगत स्वतन्त्रता , सामाजिक चेतना सब पहले से ज्यादा है तब  निराशा कहाँ से आई ? क्या है जो अभी भी नही है ? क्या है जो चाहिए ? पर मैं कहती हूँ कि ‘निराशा ‘ मानसिक से ज्यादा शारीरिक दोष है ... हैरान हो रहे होंगे आप ! लेकिन अपने भी जरूर सुना होगा ‘ स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन निवास करता है !’

तो अगर निराशा अस्वस्थ मन का प्रतीक है तो उसकी जड़ें तो अस्वस्थ तन में ही हुयी न ! निराशा हर किसी को घेर रही है इसका उम्र, सामाजिक परिवेश, आर्थिक स्थिति , शैक्षणिक योग्यता आदि से कोई लेना देना नही है .. आप ही कहिये कि बहुत पढ़ा-लिखा या अमीर या ऊँचे रुतबे वाला या फिर नौजवान भी इसके शिकंजे में कैसे आ जाते हैं ? वो तो एक अच्छी जिन्दगी बसर करते हैं ... मेरा मानना है कि ये एक deficiency disease  है ..जैसे कोई भी दूसरी बीमारी होती है ... अच्छा भोजन , अच्छे विचार , अच्छा सामाजिक / पारिवारिक माहौल ,स्वस्थ जीवन शैली आदि ...सब इसके दमन के लिए जरूरी हैं ...इनमे से किसी की भी कमी पहले शरीर को कमजोर करती है और फिर मन को और कमजोर मन सकारात्मक सोच नही रखता .. तनिक भी समस्या , परेशानी , कष्ट , दुःख या संकट आते ही विचलित हो जाता है या कहिये कि ‘’निराश ‘’ हो जाता है ...क्योंकि शायद समस्या , परेशानी , कष्ट , दुःख या संकट का सामना करने का हौंसला ,सीख या जानकारी देने में परिवार से चूक हो गयी ...खान -पान,नैतिक विचारों ,सकारात्मक सोच और स्वस्थ मानसिकता की सही खुराक नही दी गयी ...गलत भोजन ने शरीर को और अकेलेपन ने मन को कमजोर किया और नतीजा ‘’ निराशा ‘’....

देर नही हुयी है ,  परिवार को एक महत्त्वपूर्ण इकाई बनना है ...पारिवारिक /सामाजिक व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना है ...
इस उम्मीद के साथ की ‘निराशा ‘ जानी जाये कभी महसूस भी की जाये लेकिन हावी न हो जाये ...खोखला न कर जाये ...
अपना ख्याल रखियेगा ..

Comments

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