एक बस शर्म से नही मरते !
प्यार
भरा नमस्कार दोस्तों,
आज
ऐसे ही मन में ख्याल आया ..नही सच कहूं तो समाचारों ने मन में ये बात लायी कि हम आज बीमारी से , कर्जे से , बलात्कार से , बम अटैक से , पत्थरबाजी
से , गरीबी से , चिंता से , नशाखोरी से , बाढ़ से , भीड़ से , एक्सीडेंट से , अवसाद
से , शक से , राजनीति से और भी ना जाने कितने ही तरीकों से मारे जा रहे हैं ...और
ये कोई दबी-ढकी या देश के अंदर तक रहने
वाली बातें नही हैं ..ये न्यूज़ चैनल पर भी प्रसारित होने वाली खबरें हैं ..ये सामाजिक मंचों , टी .वी स्टूडियो में होने वाली
बहस के ज्वलंत मुद्दे भी हैं I जिन पर
बुध्हिजीवी वर्ग अपनी कीमती राय सलाह और सुझाव भी गरमा -गरम बहस के दौरान देते हैं
I
पर
हम इस गौरवशाली देश के बेहद ज़हीन और सहनशील लोग हैं I अगर दूसरों पर होने वाले इन
हमलों से इतनी जल्दी परेशान हो जायेंगे या बिना अपने पर बीते ही अपना खून खौलाने
लगेंगे, तो भई लानत है हमारी सहनशीलता,अमनपसंदी और संस्कारी होने पर! ऐसे भी कहीं
होता है क्या ? इतने बड़े देश में अगर भूख से एक घर की तीन बच्चियां मर भी गयीं ,
बलात्कार लगातार हो भी रहे हों , नौजवान बेकाबू होते जा रहें हों , सडकों पर आये
दिन हादसे हों तो भी , समाजिक वातावरण सौहार्द से संहार में बदल जाये तब भी कौन सा
ऐसा पहाड़ टूट पड़ा .... अब ताली एक हाथ से तो बजती नही है ... गलती मारने वाले की
है तो मरने वाले ने भी कुछ तो किया ही होगा .. हमें तो कोई नही मार गया !
पर
मैं सोच रही थी कि जब इतना सबकुछ हो रहा है और हममें से ज्यादातर को कोई फर्क भी
नही पड़ रहा तो हमें किस बात का इन्तेजार
है ?? कितना अजीब है कि हम शर्म से भी नही मरते !!
एक
जज़्बा जो लाज़मी है , जो हम सब में है पर कहीं छुपा है , उसीको बाहर लाने की अपील
के साथ ...आज के लिए बस इतना ही !
अपना
ख्याल रखियेगा !
Good
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