BAADH




प्यार भरा नमस्कार दोस्तों ,
आप को भी इस बात पर विश्वास होगा कि हिसाब हर जगह बराबर हो ही जाता है , समाज में , व्यापर में , लेन- देन में ...ऐसे ही प्रकृति में भी I एक कहावत है ‘’ जैसा तेरा गाना वैसा मेरा बजाना ‘’... इस भूमिका का मतलब आपका ध्यान विगत वर्षों में हुयी त्रासदियों और प्राकृतिक आपदाओं की तरफ आकर्षित करना है जिनमें जान- माल की बड़े पैमाने पर हानि हुयी है I

उत्तराखंड की भयानक बाढ़ अनगिनत मौतें और अब केरल की भयावह स्थिति अत्यंत दुखद और सहानुभूतिपूर्ण है .... पर क्या कभी सोशल मिडिया के जरिये या प्रत्यक्ष ही आपने देश की सिलिकॉन वैली / महानगर बेगलुरु के जल स्त्रोतों के दृश्य या फोटो आदि देखे हैं I आप पानी और झाग के ढेर में फर्क नही कर पाएंगे I कंप्यूटर के महारथी , देश के विशेष योग्यता धारक , ऊँची डिग्रीधारी ENGINEERS की बहुत बड़ी संख्या वहां निवास करती है और एक मशीनीकृत जीवन जीने को बाध्य है जिसमें इन जल स्त्रोतों की तरफ ध्यान देने की फुरसत किसी को नही है .... अब बताइए प्रकृति कब तक एक हाथ से ताली बजाएगी I

शायद अब आपको मेरा आशय स्पष्ट हो रहा होगा I जी हाँ ! मैं समय रहते न चेतने की बात कर रही हूँ I उत्तराखंड में अव्यवस्थित / अनियोजित भवन निर्माण , पानी के बहाव को बाधित करना आदि कुछ प्रमुख कारण थे इस मुसीबत के ...केरल की नदियों का पानी उतरते-उतरते अपने पीछे टनों कचड़े का ढेर छोड़ गया है जागरूक करने के लिए ... मुंबई की बारिश में इमारतों का ढहना भी इंसान की लापरवाही और अनुचित निर्माण की कहानी कहता है I

मेरा शहर भी इससे अछूता नही है ... आखिर हैं तो हम सभी हिन्दुस्तानी ना !
सहनशीलता , धैर्य , बेवकूफी , लापरवाही के पर्याय हैं (अपवाद सभी जगह हैं ) पर क्या ये सब सब्र , संतोष और धैर्य का विषय है ... अकाल मौतें , बेघर होना , खाने पानी को मोहताज रहना , रहत के इंतजार में प्राण त्याग देना ...क्षण भर को भी अपने को उस जगह रखो तो रूह काँप जाती है ... पर मुसीबत कहकर नही आती ... पर क्या सुरक्षा और सावधानी का कोई मोल नहीं है ?? क्या हम जागरूक और सावधान नही बन सकते ??

क्या समय रहते चेता नही जा सकता ?? अगर हाँ कह रहे हैं आप तो योगदान भी दीजिये !
सब अपनी क्षमताओं , समय और परिस्थिति के अनुरूप सामाजिक जागरूकता के प्रसार में अपनी भागीदारी दें .... इसी कामना के साथ ..
आज के लिए इतना ही ...

अपना ख्याल रखियेगा

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