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                                                                                        ' मन की बात ' प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , काफी दिनों से कुछ नहीं लिखा। इसलिए नहीं कि कुछ था ही नहीं लिखने को या किसी भी बात ने मन को झकझोरा नहीं। बल्कि सच तो ये है कि lockdown की नीरवता मन पर भी छाई थी और जब कहीं कोई आहट ना हो तो लगता है कि अब हमारे यहां कौन आएगा। वैसे ही जैसे कि मेरे blogs पर कोई response नहीं था तो लगा कि जाने दो कोई नहीं पढता और अगर नहीं पढता तो या तो उसको मेरी बातें सही नहीं लगतीं या इनमें किसी के पसंद किये जाने लायक मुद्दे नहीं हैं। और हो भी सकता है कि लोगों ने आजकल पढ़ना कम और देखना ज्यादा शुरू कर दिया हो। फिर यकायक मन में आया कि नहीं ये सब मैं किसी की प्रतिक्रिया पाने के लिए नहीं लिखती (वो अलग है कि प्रतिक्रिया साकारत्मक हो तो हमें प्रोत्साहित करती है और नाकारात्मक हो तो सतर्क कर देती है) मैं लिखती हूँ अपने मन को हल्का करने के लिए उस बोझ से जो उन विचारों का होता है जो ख़ुशी से ज्यादा चिंता , कष्ट , खेद या गुस्से का कारण बनते हैं। यूँ भी हरेक का अपना -अपना अभिव्यक्

किंकर्तव्यविमूढ़ ?’

‘कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’... फल की इच्छा के बिना किया कर्म ही धर्म है ! यानि कर्म प्रधान जीवन ही सार्थक है ! परिवार का पालन-पोषण, शत्रु का नाश, युद्ध आदि  कर्म की श्रेणी में आते हैं ! सुना कि वर्तमान कर्म अगले जन्म की नींव रखता है अगले जन्म की तैयारी ही इस जन्म की सार्थकता है ! कर्म के लिए आवश्यक है कि वो नैतिकता की परिभाषा में आता हो ! अन्यथा अगला जन्म एक सजा होगा ! अनेक सत्कर्मों का, संयम और सत्यनिष्ठ जीवन का प्रतिफल है मनुष्य योनि में जन्म ! कर्म अगले जन्म की योनि निर्धारित करते हैं ! इन सब अंतरनिहित द्वन्द और विचारों से लड़ ही रही थी कि.... देखा सड़क पर एक निरीह पिल्ले को एक बालक ने व्यर्थ पत्थर खींचकर मारा  पिल्ला किकियाता हुआ भाग खड़ा हुआ ! अचानक फ़िर वाद-विवाद में पड़ गयी ...कि ये क्या पिल्ले के पूर्वजन्म के  दुष्कर्म हैं जो वो पशु योनि में जन्मा है ? क्या अभी भी इसके पूर्व पाप ख़त्म नही हुए हैं जो ये बिना कारण पत्थर खा रहा है ? बालक जन्म क्या उसने अपने पूर्व के सत्कर्मों से पाया है ? पर बिना कारण क्यों उसने वो पत्थर उठाया ? क्या ये दोनो का पूर्व जन्म का बैर है ? क्या
प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, श्री जवाहरलाल नेहरु के द्वारा लिखा एक लेख ‘’ CULTURE ‘’ पढ़ा और पढ़ाया भी था जो कि state बोर्ड की ग्यारहवीं या बारहवीं की इंग्लिश की किताब में था ... लेखक के शब्दों का आशय ( मेरे अनुसार) ये है कि culture यानि संस्कृति की कोई निश्चित परिभाषा नही हो सकती सिवाय इसके कि ये उन रिवाजों का निरंतर पालन है जो किसी समुदाय / स्थान /वर्ग विशेष की  भौगोलिक / आर्थिक / सामाजिक स्थिति आदि से प्रभावित होते हैं और काफी हद तक इनका अतार्किक अनवरत पालन इनके पालन करने वालों को एक सीमा में बांध देता है ... लेखक का विश्वास है कि संस्कृति में भी नवीनीकरण अति आवश्यक है ...अन्यथा इसका हश्र भी उस रुके पानी के समान है जो सड़ने और बदबू करने लगता है और काई और कीटाणुओं को जन्म देता है ... प्राचीन संस्कृति के विवेकहीन अनुकरण और नवीनीकरण के ह्रास से इसके अनुयायी भी एक सीमा में बंध जाते हैं और सिमित मानसिकता का शिकार बन जाते हैं जहां  परस्पर गाह्यता , सहिषुनता और विकास के रास्ते लगभग बंद ही हो जाते हैं ..ऐसे में समुदाय एकाकी , उपेक्षित और पिछड़े लोगों का झुण्ड मात्र बनकर रह जाता है ... ज

BAADH

प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , आप को भी इस बात पर विश्वास होगा कि हिसाब हर जगह बराबर हो ही जाता है , समाज में , व्यापर में , लेन- देन में ...ऐसे ही प्रकृति में भी I एक कहावत है ‘’ जैसा तेरा गाना वैसा मेरा बजाना ‘’... इस भूमिका का मतलब आपका ध्यान विगत वर्षों में हुयी त्रासदियों और प्राकृतिक आपदाओं की तरफ आकर्षित करना है जिनमें जान- माल की बड़े पैमाने पर हानि हुयी है I उत्तराखंड की भयानक बाढ़ अनगिनत मौतें और अब केरल की भयावह स्थिति अत्यंत दुखद और सहानुभूतिपूर्ण है .... पर क्या कभी सोशल मिडिया के जरिये या प्रत्यक्ष ही आपने देश की सिलिकॉन वैली / महानगर बेगलुरु के जल स्त्रोतों के दृश्य या फोटो आदि देखे हैं I आप पानी और झाग के ढेर में फर्क नही कर पाएंगे I कंप्यूटर के महारथी , देश के विशेष योग्यता धारक , ऊँची डिग्रीधारी ENGINEERS की बहुत बड़ी संख्या वहां निवास करती है और एक मशीनीकृत जीवन जीने को बाध्य है जिसमें इन जल स्त्रोतों की तरफ ध्यान देने की फुरसत किसी को नही है .... अब बताइए प्रकृति कब तक एक हाथ से ताली बजाएगी I शायद अब आपको मेरा आशय स्पष्ट हो रहा होगा I जी हाँ ! मैं समय रहत

ठेला बनाम स्वरोजगार

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, हर बार ही ज्यादातर ऐसा होता है कि समाचार पत्रों के जरिये मन में विचारों की श्रृंखला तेजी पकड़ लेती है , पता चला कि गुजरात के वडोदरा में गोल-गप्पों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है लोगों की सेहत के मद्देनजर I अच्छा लगा सोचकर कि कितना ध्यान रखा जा रहा है समाज का , नागरिकों का ... पर बात अगर सेहत की है तो क्यों ना सिगरेट , शराब , गुटखे पर भी प्रतिबन्ध हो हर राज्य में ... उन पर सिर्फ वैधानिक चेतावनी है ! क्यों ???   क्या इनसे सेहत और   समाज की सूरत पर फ़र्क नही पड़ता ?? शायद इन पर रोक से सरकार की सेहत और जेब पर फ़र्क पड़ता है ! क्या ये सम्भव नही कि जाँचकर्ता नियुक्त किये जाएँ जो इन गोल-गप्पे / चाट / भेल-पूरी / चाऊमिन इत्यादि बेचने वालों पर नजर रखें I   शायद इससे देश में बेरोजगारी की समस्या से कुछ निजात मिले ! पर हाँ ये भरोसा भी सरकार को दिलाना होगा कि जांचकर्ता की भी समय-समय पर पड़ताल हो वरना तो नुकसानदेह ठेलों और उनके जाँच अधिकारी जरूर फले-फूलेंगे चाहे लोगों की सेहत बिगड़ जाये I इन ठेलों पर रोक छोटे व्यापार / निजी उद्योग पर कुठाराघात है ... बड़े शहरों की आधु

एक बस शर्म से नही मरते !

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, आज ऐसे ही मन में ख्याल आया ..नही सच कहूं तो समाचारों ने मन में ये बात लायी कि हम आज बीमारी से , कर्जे से , बलात्कार से , बम अटैक से , पत्थरबाजी से , गरीबी से , चिंता से , नशाखोरी से , बाढ़ से , भीड़ से , एक्सीडेंट से , अवसाद से , शक से , राजनीति से और भी ना जाने कितने ही तरीकों से मारे जा रहे हैं ...और ये कोई दबी-ढकी   या देश के अंदर तक रहने वाली बातें नही हैं ..ये न्यूज़ चैनल पर भी प्रसारित होने वाली खबरें हैं ..ये   सामाजिक मंचों , टी .वी स्टूडियो में होने वाली बहस के ज्वलंत मुद्दे भी हैं I   जिन पर बुध्हिजीवी वर्ग अपनी कीमती राय सलाह और सुझाव भी गरमा -गरम बहस के दौरान देते हैं I पर हम इस गौरवशाली देश के बेहद ज़हीन और सहनशील लोग हैं I अगर दूसरों पर होने वाले इन हमलों से इतनी जल्दी परेशान हो जायेंगे या बिना अपने पर बीते ही अपना खून खौलाने लगेंगे, तो भई लानत है हमारी सहनशीलता,अमनपसंदी और संस्कारी होने पर! ऐसे भी कहीं होता है क्या ? इतने बड़े देश में अगर भूख से एक घर की तीन बच्चियां मर भी गयीं , बलात्कार लगातार हो भी रहे हों , नौजवान बेकाबू होते जा रह

सन्देश ( whatsapp के !)

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , आप भी जरूर whatsapp   के उपभोक्ता होंगे .. यदि आपका जवाब ‘ ना ‘ है तो मैं आपको पिछड़ा नही सुरक्षित कहूँगी ! क्यों ?? क्योंकि whatsapp के संदेशों के जरिये आजकल समाज को भीड़ में बदलने का जो नया शगल शुरू हुआ है वो यकीनन चिंताजनक है ... समाचार पत्रों / टी.वी./ या अन्य   माध्यमों से आपको भी समाज के नए रूप ‘’   भीड़ तंत्र ‘’ और उसके विनाशकारी , अमानवीय , आतंककारी और घिनौने कामों की जानकारी अवश्य ही मिलती होगी ! कितना अजीब है कि ‘’ सत्यमेव जयते ‘’, ‘’ अहिंसा परमो धरम ‘’ और ‘’ असत्य पर सत्य की जीत ’’ में सदियों से भरोसा करने वाला , धार्मिक , सांस्कृतिक , पारम्परिक रीति-रिवाजों , धरोहरों से भरपूर हमारा समाज आज बीमार और संक्रमित है ... संदेह , अविश्वास , अत्याचार , अनैतिक व्यहवार ही वो संक्रमण हैं जिन्होंने सहज बुध्ही को हर लिया है ... सालों पहले धीरुभाई अम्बानी ने एक नारा एक सकारात्मक सोच के साथ बनाया था ‘’ कर लो दुनिया मुट्ठी में ‘’ इसके पीछे उनकी सोच कितनी सापेक्ष और वृहद थी !! पर उसी के विपरीत एक और वृहद सोच   जो पूर्णतया नकारात्मक है ,जो है कुछ कु

जूनून (एक नया मज़हब)

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , बड़े लम्बे समय से , बहुत सी ख़बरों के हवाले से और बहुत सारी आस-पास की घटनाओं से मुझे अब लगने लगा है कि अब दुनिया में एक नए मजहब ने गहरी जगह बना ली है ...और इसके अपने कायदे , सोच और फलसफें हैं ...यकीनन इसका इंसानियत , मासूमियत , आपसी प्यार , भाई-चारे से भी कोई लेना देना नही है ... ये उन लोगों के झुण्ड का मजहब है जो कि सताये , दबाये , धिक्कारे और उससे भी ज्यादा उकसाए गये हैं , जिनकी कोई अपनी निजी सोच नही है , जो बरगलाये गये हैं ... जो अधिकतर अशिक्षा ,गरीबी , भुखमरी , लालसाओं , महत्वाकांक्षाओं के शिकार हैं .... और जो चालाक , धूर्त , अमानवीय ,मतलबपरस्त लोगों के द्वारा गुमराह किये जाते हैं ...  अजीब नही लगना चाहिए अगर मै कहूं कि.... कश्मीर में पत्थरबाजी , निर्दोषों की हत्या , देश में पत्रकारों का खून , भीड़ का लोगों को शक की बिना पर पीट-पीट कर मार डालना , औरतों /बच्चियों /लडकियों की इज्जत लूटकर उनकी नृशंस हत्या करना वगैरह वगैरह  ... इस नए मजहब के रीति – रिवाज़ हैं , और जिन रिवाजों को पूरा करने के लिए वो ज्यादातर धर्म, जाति , कारण , जरूरत किसी की परवाह न

कविता - रिश्ता !

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                        ''  रिश्ता '' ये एक रिश्ता बहुत ही प्यारा है ,    जिसमें आस भी है, विश्वास भी , भरोसा भी है और यकीं भी ! ये एक रिश्ता बहुत ही प्यारा है ,     जिसमें रूठना भी है , मनाना भी , छेड़ना भी है और हँसाना भी ! ये एक रिश्ता बहुत ही प्यारा है ,     जिसमे तड़प भी है , इन्तजार भी , इनकार भी है और स्वीकार भी ! ये एक रिश्ता बहुत ही प्यारा है ,     जिसमे सब-कुछ है थोड़ा - थोड़ा , और प्यार बहुत ज्यादा है ! एक रिश्ता जिसका कोई नाम नहीं है ....बहुत ही प्यारा है !!!  पर कहाँ मंजूर है दुनिया को कोई बेनाम रिश्ता ! तुम ना दो नाम, तो वो दे देती है ...  वैसे दुनिया भी कहाँ कोई रिश्तेदार है हमारी... फिर भी वो जबरन हमारी जिन्दगी को घेर लेती है !  कौन है ? कहाँ है ? किसकी है असल में ये दुनिया ? क्या ये झुण्ड है उन लोगों का जो हमेशा सामने हैं ....  पर साथ नही !!! आज के लिए इतना ही ... अपना ख्याल रखियेगा .....

अवसाद / depression (part 2)

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, पिछली बार आपसे निराशा पर बात की थी .... मेरा मानना है कि निराशा की जड़ें अस्वस्थ शरीर में हैं ...लेकिन इसके दूसरे पहलू को भी अनदेखा नही किया जा सकता और वो है उम्मीद ...जी हाँ आशा या उम्मीद ! आपने   खुद भी महसूस किया होगा कि जब हमारी उम्मीद का स्तर बढ़ता है ...फिर वो चाहे घर के सदस्यों से हमारा ध्यान रखने के लिए हो , स्कूलों   या विद्यालयों में अच्छे नम्बर मिलने की हो , नौकरी में अच्छा पद या तनख्वाह में बढ़ोतरी की हो , अपने प्रिय से प्रेम पाने की हो , प्रिय के द्वारा याद किये जाने की हो , धन – सम्पदा बढने की हो , अपने सपनों को पूरा करने की हो( जिसमें दूसरों की भी भागीदारी हो)..अधिकतर मन को निराशा से भर देती हैं ... विशेषकर जब इन उम्म्मीदों और सपनों में हम खुद से ज्यादा दूसरों से अपेक्षाएं रखते हैं ... तब निराशा अनायास ही हमारे इर्द-गिर्द घिर आती है याद कीजिये कभी किसी छोटे बच्चे को अचानक गिर जाने पर चोट लगने से ज्यादा इस बात पर रोते देखा हो कि माँ आकार उसे उठाये गले लगाये ...रोना चोट लगने पर इतना नही जितना माँ के देर से आने पर आता है .... किसी

लोकतंत्र ( क्या वाकई है ?)

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , देख रहें हैं न आप! ....ये क्या हो रहा है !...या यूँ कहिये कि हम क्या कर रहें हैं ! हम अपने अधिकतर वर्तमान युवा वर्ग का सही मार्गदर्शन , निर्देशन और पालन-पोषण नही कर रहे हैं ...कैसे ??   क्योंकि जरूरी मुद्दों पर हम चुप हैं तो गैर जरूरी पर मुखर... मेरे लिहाज़ से रोजाना घंटों देरी से पहुचने वाली ट्रेनों , गंदे पानी की सप्लाई , जगह-जगह उखड़ी सडकों , महिलाओं पर कु-द्रष्टि और बलात्कार  , ATM से पैसा न निकल पाने की किल्लत , सरकारी अस्पतालों में मरीजों से दुर्व्यवहार या फिर दवाओं का गोरख-धंधा , वोटों की खरीद-फरोख्त ,निरंतर घटती वन सम्पदा , आधुनिकता की आड़ में नशों की लत , शिक्षण संस्थानों का अंधाधुंध व्यवसायीकरण , ऑनलाइन परोसी जाने वाली अनुचित सामग्री , सडकों पर जानवरों / वाहनों / गंदगी का अतिक्रमण , गरीबों को पेटभर भोजन का अभाव   इत्यादि इत्यादि इत्यादि ..कितनी ही चीज़ें हैं जो मंदिर निर्माण , गौ-रक्षा , किसी फिल्म पर बैन लगाने , किसी नेता की भर्त्सना करने , समाज को वर्गों और धर्मों में बाटनें की पैरवी करने ,किसी युनिवार्सिटी में लगे फोटो पर जान-माल

अवसाद / depression

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों, आपको भी ये ही लगता होगा कि   blood pressure और diabetes की तरह आजकल इस depression की बीमारी ने भी हर घर में अपने पाँव पसार लिए हैं ... जिसे देखो वो निराशा / depression का शिकार है ...पर ये कोई नया रोग नहीं है !   हाँ शायद चर्चा में अब आया है ... या इसके लक्षणों पर गौर अब किया गया है ... या अब इसके बारें में लोग दूसरों को बताने लगे   हैं ... क्या आपको भी लगता है कि अब समाज में व्यक्ति-विशेष की अहमियत बढ़ी है ? अब व्यक्ति को समाज कि एक अहम इकाई के रूप में देखा जा रहा है ? तभी तो इतनी सारी संस्थाएं सामने आई हैं ... जो व्यक्ति के हक के लिए आवाज़ उठाती हैं ! जो उसे अपने खुद में भरोसा दिलाने में मदद करती हैं .समाज जागरूक हुआ है , परिवार , समाज , कार्यालयों में स्त्री –पुरुषों की मानसिक , मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाता है ...स्कूलों में काउंसलर रखे जाते हैं   ... प्रयास सराहनीय हैं ... जीवन की गुणवत्ता बढ़ रही है और लोगों में जागरूकता आ रही है ...पर ऐसे में ये निराशा ! कुछ अजीब नही है ?? ..जब व्यक्तिगत स्वतन्त्रता , सामाजिक चेतना सब पहले स

फलसफा - ए -जिंदगी

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प्यार भरा नमस्कार दोस्तों , वो कहते हैं , अरे! ठीक है काम तो चल रहा है , सही बात भी है काम कभी नहीं रुकता , रुकता है ‘ मन’ , जी हाँ मन ! ये मन ही तो है जो रूक जाता है और फिर सबको हैरान करता है .....कभी किसी लालच में , कभी किसी के प्यार में , कभी किसी से नफरत में , कभी किसी   सपने में , कभी किसी लालसा में , कभी गुस्से में , और कभी इंतजार या उम्मीद में .... और जनाब एक बार रूका तो फिर जिद पकड़ लेता है , दिमाग की भी नही सुनता . कहते हैं दिल और दिमाग साथ – साथ नही चलते , पर कभी – कभी वो भी एक दूसरे से कदम मिला लेते हैं लेकिन ये जो मन है वो अडियल है ... नहीं नही मन और दिल को एक न समझें ...वो जो दिल और दिमाग को जोड़ता है ना उसी तार के बीच में कहीं अटका होता है मन ...और जैसे ही दिल दिमाग कहीं साथ होने का सोचते हैं ये अपना अलग राग शुरू कर देता है ... दिल ने कहा फलां अच्छा है , दिमाग ने तर्क दिया इसमें क्या अच्छा है ? दिल ने समझाया और अपना पक्ष रखा तो दिमाग ने कसौटी पर कसा , थोडा न- नुकुर के बाद चलो राजी भी हो गया , किन्तु ये क्या ! मन ने कहा ‘’ ना ‘’ ...होगा कोई लाख अच्छा , होंगी